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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका २४ तीर्थंकरों में- २४ तीर्थकर देवों को यथाकाल बंटनादि करना चाहिये, यदि उसका पालन नहीं किया हो तो इन दोषों का प्रतिक्रमण करता हूँ।
२५ प्रकार की भावनायें-२४ प्रकार की भावनाओं में लगे दोषों का मैं प्रतिक्रमण करता हूँ।
२५ प्रकार क्रियाओं में–२५ क्रियाओं में लगे दोषों का मैं प्रतिक्रमण करता हूँ। २६ प्रकार की पृथ्वियों में
रुचिरा सोलस-पड़ला, सत्तसुपुढवीसुहोति पुढवीओ।
अवसप्पिणीए सुद्धा, खराय उपसप्पिणीयदु ।। १. रुचिरा नाम की एक पृथ्वी है वह भरत और ऐरावत के अवसर्पिणी काल में शुद्धा नाम की पृथ्वी कही जाती है और वही उत्सर्पिणी काल में खरा नाम से कही जाती है, रत्नप्रभा भूमि के खर भाग में पिण्ड रूप से एक दो हजार योजन के परिणाम वाली निम्नलिखित भूमियाँ हैं-१. चित्रा पृथ्वी २. वद्र पृथ्वी ३. वैडूर्यपृथ्वी ४. लोहितांक पृथ्वी ५. मसार गंध पृथ्वी ६. गोमेध पृथ्वी ७. प्रवाल पृथ्वी ८. ज्योति पृथ्वी ९. रसांजन पृथ्वी १०. अंजनमूल पृथ्वी ११. अंक पृथ्वी १२. स्फटिक पृथ्वी १३. चंदन पृथ्वी १४. पृथ्वी १५, बकुल पृथ्वी १६. शिलामय पृथ्वी, पंकभाग में ८४ हजार योजन प्रमाण, वाल वचंक पृथ्वी तथा इसी भूमि के अब्बहुल भाग में ८० हजार परिमाण वाली "रत्नप्रभा'' नामकी पृथ्वी है और आकाश के नीचे ६ नरकों की भूमियाँ हैं कुल २६ पृथ्वियाँ हैं।
२७ प्रकार के अनगार गुण-१२ भिक्षु प्रतिमा, ८ प्रवचन मातृकाएँ, क्रोध, मान, माया, लोभ, मोह, राग और द्वेष के अभाव रूप प्रवृत्ति में (ये २७ मुनियों के गुण हैं ) २८ प्रकार के आचारकल्प अथवा मुनियों के २८ मूलगुणों में।
२९ प्रकार के पाप सूत्रों में-१. चित्रकर्मादिसूत्र-चित्रकार आदि के शास्त्र, २. गणित सूत्र, ३. चाटुकार सूत्र, ४. वैद्यक सूत्र, ५. नृत्य सूत्र ६. गान्धर्व सूत्र ७. पटह सूत्र ८. अगद सूत्र १. मद्य सूत्र १०. घृत सूत्र