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________________ + विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका ४ ३ ३ पुण्याश्रित हैं तथा ४ अनन्त चतुष्टय - अनन्तदर्शन, अनन्तज्ञान, अनन्तसुख व अनन्तवीर्य ये आत्माश्रित गुण हैं । शेपक- श्लोकाः अर्हन्तदेव की महिमा गत्वा क्षितेर्वियति पंचसहस्त्रदण्डान्, सोपान - विंशतिसहस्त्र - विराजमाना । रेजे सभा धनद यक्षकृता यदीया, तस्मै नमस्त्रिभुवनप्रभवे जिनाय । । १ । । अन्वयार्थ - ( नियति ) आकाश में ( क्षिते ) पृथ्वी से ( पंचसहस्रदण्डान् ) पाँच हजार धनुष [ ऊपर ] ( गत्वा ) जाकर ( सोपानविंशति सहस्र विराजमाना ) बीस हजार सीढ़ियाँ सुन्दर हैं ऐसी ( यदीया ) जिनकी ( सभा ) समवशरण सभा ( धनद यक्षकृता ) कुबेर रचित हैं उस सभा में ( रेजे) शोभायमान ( तस्मै ) उन ( त्रिभुवन प्रभवे ) तीन लोक के नाथ (जिनाय ) जिनेश्वर के लिये ( नमः ) नमस्कार हो । भावार्थ- आकाश में पृथ्वी से ५००० धनुष ऊपर जाकर सुन्दर २० हजार सीढ़ियों पर तीन लोक के नाथ जिनदेव की कुबेररचित समवशरण सभा हैं । उस समवशरण सभा में जो विराजमान हैं उन तीर्थंकर लिये नमस्कार हो । समवशरण मंडप की रचना सालोऽथ वेदिरथ वेदिरथोऽपि सालो, वेदिश्च साल इह वेदिरथोऽपि साल: I वेदिन भाति सदसि क्रमतो यदीये, प्रभु के तस्मै नमस्त्रिभुवनप्रभवे जिनाथ ।। २ । । अन्वयार्थ -- ( यदीये) जिनके समवशरण में ( साल: ) कोट पश्चात् ( वेदिः ) वेदी ( अथ ) पश्चात् ( वेदिरतः अपि शाल: ) पुनः वेदी और फिर शाल / कोट (च ) और ( वेदिः ) वेदी ( शाल ) कोट ( इह ) इस प्रकार ( वेदिरथोऽपि शालः ) पुनः वेदी फिर शाल (च) और ( वेदिः ) वेदी ( क्रमतः ) क्रम से ( भाति सदसि ) सभा में शोभायमान है ( तस्मै )
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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