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________________ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका चामर कटक कटिसूत्र कुण्डल केयूरप्रभृति भूषितांगौ स्वंगौ । यक्षौ कमल-दलाक्षौ परि-निक्षिपतः सलील खामर- युगलम् ।।५४।। ४३० - J अन्वयार्थ - ( कटक-कटिसूत्र - कुण्डल- केयूर-प्रभृति-भूषिताङ्गौ ) स्वर्णमय कड़ा-मेखला, करधनी - कंदोरा, कुण्डल- कर्णाभरण और बाजूबन्द आदि आभूषणों से सुशोभित अंग/ शरीर वाले ( स्वङ्गौ ) सुन्दर शरीर सम्पन्न तथा ( कमल-दल-अक्षौ ) कमल के दल समान नेत्रों वाले ( यक्षौ सलील चामर-युगलम् ) दो यक्ष लीला पूर्व चागर बुगल को ( परिनिक्षिपत: ) ढोरते हैं । - भावार्थ — स्वर्णमय कड़ा, मेखला, कर्णकुण्डल, बाजूबन्द आदि अनेक प्रकार के आभूषणों से जिनके शरीर की शोभा बढ़ रही हैं, जिनके नेत्र कमल कलिका के समान विशाल व सुन्दर हैं ऐसे सुन्दर आकृति के धारक दो यक्ष जिनेन्द्रदेव के दोनों ओर खड़े होकर निरन्तर चामर ढोरते हैं | भामण्डल आकस्मिक-मित्र युगपद् - दिवसकर सहस्र-मपगत- व्यवधानम् । भामण्डल - मविभावित- रात्रिदिव- भेद- मतितरामाभाति ।। ५५ ।। - अन्वयार्थ - ( अपगतव्यवधानं ) आवरणरहित ( आकस्मिक ) सहसा / अकस्मात् ( युगपत् ) एकसाथ उदित हुए ( दिवसकर - सहस्रम् इव ) हजारों सूर्यो के समान (अविभावित- रात्रिं-दिवभेदं ) रात-दिन के भेद को विलुप्त / अस्त करने वाला ( भामण्डलं अतितराम् आभाति ) भामण्डल अत्यधिक शोभा को प्राप्त होता है । भावार्थ- समवशरण में तीर्थंकर प्रभु के पीछे एक सहस्रों सूर्यों के तेज को भी तिरस्कृत करने वाला दैदीप्यमान भामण्डल होता है। इस भामण्डल की आभा / कान्ति के सामने रात-दिन का भेद भी समाप्त हो जाता है ऐसा यह जिनेन्द्रदेव का भामण्डल नामक प्रातिहार्य हैं। इस भामण्डल में जीवों के सात भव दिखाई देते हैं।
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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