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________________ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका ४२९ आठ प्रातिहार्यों का वर्णन अशोक वृक्ष वैडूर्य-रुचिर-विटप-प्रवाल-मृदु-पल्लवोपशोभित-शाखः । श्रीमानशोक-वृक्षो वर- मरकत-पत्र-गहन-बहलच्छायः ।। ५२।। अन्वयार्थ ( वैर्य-रुचिर-विटप-प्रवाल-मृदुपल्लव-उपशोभित शाखः ) सुन्दर वैडूर्यमणियों से बनी शाखाओं, पत्तों और कोमल कोपलों से शोभित उपशाखाओं से सहित और ( वरमरकतपत्रगहन-बहल-च्छाय: ) श्रेष्ठ हरित मणियों से निर्मित पत्तों की सघन छाया से युक्त ( श्रीमान् अशोकवृक्षः ) श्री शोभायुक्त ऐसा अशोकवृक्ष था। भावार्थ-अरहन्तदेव के आठ प्रातिहार्य होते हैं उनमें प्रथम अशोक वृक्ष है । जिस वृक्ष के नीचे भगवान् को केवलज्ञान होता है वह समवशरण में अशोक वृक्ष होता है। यह अशोक वृक्ष अनेक प्रकार की मणियों से बना होता है, इसी का लैडूर्यमणि की होती है, पत्ते हरित मणियों से बने होते हैं तथा यह कोमल कोपल व उपशाखाओं से युक्त होता है । ऐसा शोभासम्पन्न अशोक वृक्ष भक्तजनों के चित्त को आकर्षित करता हुआ रहता है। पुष्पवृष्टि मन्दार-कुन्द-कुवलय-नीलोत्पल-कमल-मालती-बकुलाधैः । समद-प्रमर-परीतै-व्यामिश्ना पतति कुसुम-वृष्टि-नभसः ।।५३।। अन्वयार्थ---( समद-भ्रमर-परीतैः ) मदोन्मत्त भ्रमरों के गुंजार से युक्त ( मन्दार-कुन्द-कुवलय-नील-उत्पल-कमल-मालती-बकुलाधैः ) मन्दारकुन्द, कुमुद [ रात्रि में विकसित होने वाले कमल ] नील कमल, श्वेत कमल, मालती, बकुल आदि ( व्यामिश्रा ) मिले हुए पुष्पों के द्वारा ( नमस: ) आकाश से ( कुसुमवृष्टिः पतति ) पुष्प वृष्टि होती रहती हैं । भावार्थ-जिनेन्द्रदेव के ऊपर जिनकी सुगन्ध से आकर्षित हो मदोन्मत्त भँवरे जिन पर गुंजार कर रहे हैं ऐसे मन्दार, कुन्द, रात्रि विकासी कमलकुमुद, नीलकमल, सफेद कमल, मालती, बकुल आदि से मिले सुन्दर सुगन्धित पुष्पों की वर्षा सदा होती रहती है।
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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