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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका भावार्थ-तीर्थकर का विहार आकाश में होता है और भक्तजन/ भव्य जनसमूह पृथ्वी पर गमन करता है | इन्द्र की आज्ञा से विहार की भूमि को वायुकुमार देव धूलि, कण्टक आदि रहित करते हैं तथा स्तनितकुमारदेव सुगन्धित जल से पृथ्वी को सोचता है। वर-पद्मराग-केसर-मतुल-सुख-स्पर्श-हेम-मय-दल-निचयम् । पादन्यासे पा सप्त, पुरः पृष्ठतश्च सप्त भवन्ति ।। ४६।।
अन्वयार्थ-विहार के समय ( पादन्यासे ) चरण रखने के स्थान में ( वरपद्मराग केसरं ) उत्कृष्ट पद्मराग मणि जिसमें केशर है ( अतुलसुखस्पर्श-हेममय-दलनिचयं ) जिनका स्पर्श अत्यन्त सुखकर है सुवर्णमय पत्तों के समूह युक्त ( पा ) एक कमल रहता है तथा ऐसे ही ( सप्तपुरः ) सात कमल आगे ( च ) और ( सप्तपृष्ठतः ) सात कमल पीछे ( भवन्ति )
भावार्थ तीर्थंकर भगवान् ज़ब विहार करते हैं तब देव उन चरणकमलों के नीचे स्वर्णमय पत्तों से युक्त तथा पद्मरागमणिमय केसरयुक्त सुन्दर कमलों की रचना करते हैं। इनमें एक कमल चरण के नीचे रहता है तथा सात कमल आगे और सात कमल पीछे रहते हैं । इस प्रकार १५ कमलों की पक्तियाँ होती हैं। इस प्रकार सब मिलाकर २२५ कमलों को रचना देवगण करते हैं। उनकी यह शोभा अवर्णनीय होती है। फलभार नम्र-शालि-ब्रीह्मादि-समस्त-सस्य-घृत-रोमाचा! परिहषितेव च भूमि-स्त्रिभुवननाथस्य वैभवं पश्यन्ती ।। ४७।। ___अन्वयार्थ-( त्रिभुवननाथस्य वैभवं पश्यन्ती ) तीन लोक के नाथ जिनेन्द्रदेव के वैभव को देखती हुई ( भूमिः ) पृथ्वी ( परिहषित इव ) हर्षविभोर होती हुई के समान ( फलभार नम्रशालि-ब्रीहि-आदि-समस्त-सस्यधृत-रोमाश्चा) विविध प्रकार के फलों के भार से झुकी हुई, शालि, ब्रीहि आदि समस्त धान्यों को धारण करती हुई रोमाञ्च को प्राप्त हो उठी थी।
भावार्थ-विहार के समय जिस ओर तीन लोक के स्वामी जिनेन्द्रदेव का विहार होता था वहाँ को पृथ्वी तीन लोक के नाथ की अनुपम सम्पदा को देखकर अत्यधिक हर्ष को प्राप्त होती हुई घट्ऋतुओं के फलों