SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 418
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ४१४ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका भक्ति का वर्णन बृहस्पति भी अपनी वाणी से नहीं कर सकता, फिर उन चैत्यालयों की स्तुति करने के लिये सामान्य मनुष्य में सक्षमता कैसे आ सकती है अर्थात् उनकी स्तुति करना मानव मात्र की समर्थता / शक्ति के बाहर हैं। निष्ठापित जिनपूजा‍ चूर्ण स्नपनेन दृष्टविकृतविशेषाः । सुरपतयो नन्दीश्वर - जिन भवनानि प्रदक्षिणीकृत्य पुनः ।। १८ ।। पञ्चसु मंदरगिरिषु श्री श्रदशालनन्दन - सौमनसम् । पाण्डुवनमिति तेषु प्रत्येकं जिनगृहाणि चत्वार्येव । । १९ । तान्यथ परीतय तानि च नमसित्वा कृतसुपूजनास्तत्रापि । स्वास्पदमीयुः सर्वे, स्वास्पदमूल्यं स्वचेष्टया संगृह्य ।। २० ।। अन्वयार्थ - ( चूर्णस्नपनेन ) सुगन्धित चूर्ण से जिन्होंने अभिषेक पूर्वक (निष्ठापित जिनपूजा: ) जिनेन्द्र पूजा पूर्ण की है— पूजा में हर्ष से भाव-विभोर होने से महा आनन्द आ रहा है उस आनंद से ( दृष्ट-विकृत विशेषाः ) जिनको आकृति कुछ विकृत हो गई है, ऐसे सुरत) इन्द्र ( पुनः ) पूजा के बाद फिर ( नन्दीश्वर जिनभवनानि ) नन्दीश्वर द्वीप के चैत्यालयों की ( प्रदक्षिणी कृत्य ) प्रदक्षिणा करके पश्चात् वे इन्द्र- " १८" ( पंचसु मन्दगिरिसु श्रीभद्रशाल नंदन सौमनसम् पाण्डुकवनं इति ) पाँचों मेरु सम्बन्धी श्री भद्रसालवन, नन्दनवन, सौमनस वन और पाण्डुक वन इस प्रकार ( तेषु चत्वारि एव प्रत्येकं जिनगृहाणि ) उन चारों ही वनों में प्रत्येक में चार चार जिन चैत्यालयों की ( अथ तानि परीत्य ) प्रथम प्रदक्षिणा देकर ( च ) और ( तानि नमसित्वा) उनको नमस्कार करके ( तत्र अपि ) वहाँ भी ( कृत सुपूजना: ) अभिषेक, पूजा आदि उत्तम रीति से करते हैं तथा ( सर्वे ) सभी देव (स्वास्पदमूल्यं संगृह्य ) अपने-अपने योग्य पुण्य का संचय करके ( स्वास्पदं ईयुः ) अपने-अपने स्थान को चले जाते हैं । भावार्थ- सुगन्धित चूर्ण से जिनेन्द्रदेव का महाअभिषेक व पूजा में भावविभोर के नृत्य, गान रूप भक्ति के रंग में रंग जाने से महाआनन्द आ रहा है उस आनन्द से जिनकी आकृति कुछ विकृत हो रही हैं ऐसे इन्द्र नन्दीश्वरद्वीप के समस्त चैत्यालयों की प्रदक्षिणा करते हैं उसके पश्चात् पाँच
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy