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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका छेदोवट्ठावणं होउ मज्झं ( इति प्रतिक्रमण पीठिका दण्डकः )
अथ सर्वातिचार-विशुद्ध्यर्थ रात्रिक { दैवसिक ) प्रतिक्रमण-क्रियायां कृत-दोष-निराकरणार्थ पूर्वाचार्यानुक्रमेण सकल-कर्मक्षयार्थ, भाव-पूजावन्दना-स्तव-समेतं श्री प्रतिक्रमण- भक्ति कायोत्सर्ग करोम्यहम् । __ अन्वयार्थ ( अथ ) अब ( रात्रिक/देवसिक ) रात्रिक/देवसिक प्रतिक्रमण क्रियायां ) प्रतिक्रमण क्रिया में ( कृत-दोष-निराकरणार्थं ) किये गये दोषों के निराकरण करने के लिये ( सर्व ) सब ( अतिचार ) अतिचार की ( विशुद्ध्यर्थं ) विशुद्धि के लिये ( भावपूजा वन्दना स्तव समेतं ) भावपूजा, वन्दना स्तव सहित ( श्री प्रतिक्रमण भक्ति ) श्री प्रतिक्रमण भक्ति ( कायोत्सर्ग ) कायोत्सर्ग को ( अहम् ) मैं ( करोमि ) करता हूँ।
णमो अरहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं ।
णमो उबज्झायाणं णमो लोए सव्यसाहूणं ।। पामो अरहताणं इस प्रकार दण्डक को पढ़कर कायोत्सर्ग करें । पश्चात् थोस्सामि स्तव पढ़ें।
"निषिद्दिकादण्डका: " पामो जिणाणं ! णमो जिणाणं ! णमो जिणाणं! णमो णिस्सिहीए ! णमो णिस्सिहीए ! णमो णिस्सिहीए ! णमोत्थु दे ! णमोत्थु दे ! णमोत्थु दे! अरहंत ! सिद्ध ! बुद्ध ! णीरय ! णिम्मल ! सम-मण ! सुभमण ! सुसमस्थ ! समजोग ! सम-भाव ! सल्लघट्टाणं सल्लघत्ताणं ! णिमय ! णीराय ! णिहोस ! णिम्मोह ! णिम्मम ! णिस्संग, पिस्सल्ल! माणमाय-मोस-मूरण ! तवप्पहाणं! गुण-रयण-सील-सायर ! अणंत ! अप्पमेय ! महदि-महावीर-वड्डमाण ! बुद्धि-रिसिणो ! चेदि ! णमोत्थु ए! णमोत्यु ए ! णमोत्थु ए !
अन्वयार्थ---( णमो जिणाणं ) जिनेन्द्र देव को तीन बार नमस्कार हो ( णमो णिस्सिहिए ) १७ प्रकार के निषिद्दिका स्थानों को नमस्कार हो ( णमोत्थु दे-णमोत्थु दे णमोत्थु दे ) नमस्कार हो, नमस्कार हो, नमस्कार हो । ( अरहंत ) चार घाति कर्म के क्षयकारक अरहंत ! ( सिद्ध ) नि:शेष कर्म-क्षय कारण सिद्ध ! ( बुद्ध ) हेयोपादेय विवेकसम्पन्न बुद्ध ! ( णीरय )