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________________ विमल झान प्रबोधिनी टीका ४०३ गदो) पावानगरी में कार्तिक मास की कृष्ण चतुर्दशी की रात्रि में स्वाति नक्षत्र रहते हुए प्रभात काल में भगवान् महति महावीर वर्धमान निर्वाण को प्राप्त हुए । ( तिसुवि लोएसु भवणवासिय वाणविंतर जोयसियकप्पवासियत्ति चउबिहा देवा सपरिवारा दिव्वेण पहाणेण, दिव्येण गंधेण,दिव्वेण अक्खेण, दिव्वेण पुप्फेण, दिव्वेण चुण्णेण, दिब्वेण दीवेण, दिव्वेण धूवेण, दिव्वेण वासेण ) तीनों लोकों में जो भवनवासी, वाणव्यन्तर, ज्योतिषी और कल्पवासी इस प्रकार चार प्रकार के देव दिव्य जल, दिव्य गन्ध, दिव्य अक्षत, दिव्य पुष्य, दिव्य नैवेद्य, दिव्य दीप, दिव्य धूप, दिव्य फला के द्वारा ( णिच्चकाल अचंति, पुज्जति, णमंसंति, परिणिव्वाण-महाकल्लाण पुज्जं करेंति ) नित्यकाल अर्चा करते थे, पूजा करते थे, नमस्कार करते थे, परिनिर्वाण महाकल्याण पूजा करते थे। ( अहमवि इह संतो तत्थ संताइयं । णिच्चकाल अंचेमि, पुज्जेमि, वंदामि, णमस्सामि ) मैं भी यहाँ रहते हुए वहाँ स्थित निर्वाण क्षेत्रों की नित्यकाल अर्चा करता हूँ, पूजा करता हूँ, वन्दना करता हूँ, नमस्कार करता हूँ । ( दुक्खक्खओ, कम्मक्खओ, बोहिलाहो सुगइगमणं, समाहिमरणं ) मेरे दुःखों का क्षय हो,कर्मों का क्षय हो, रत्नत्रय की प्राप्ति हो, सुगति में गमन हो, समाधिमरण हो ( जिणगुण-संपत्ति होउ मज्झं ) मुझे जिनेन्द्रदेव के गुणरूपी सम्पत्ति की प्राप्ति हो । भावार्थहे भगवन् ! मैंने निर्वाणभक्ति सम्बन्धी कायोत्सर्ग किया अब उसकी आलोचना करने की इच्छा करता हूँ । इस अवसर्पिणी काल के दुषमा-सुषमा काल अर्थात् जब चतुर्थ काल में तीन वर्ष साढे आठ माह शेष रहे थे तब पावापुर नगर से कार्तिक कृष्णा चतुर्दशी की रात्रि के पिछले भाग में प्रात:काल की शुभ बेला में स्वाति नक्षत्र में भगवान महावीर मुक्ति को पधारे । उस मंगलमय बेला में तीनों लोकों में निवास करने वाले भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिषी और कल्पवासी इन चार प्रकार के देव अपने सपरिवार आकर दिव्य जल, दिव्य गन्ध, दिव्य अक्षत, दिव्य पुष्प, दिव्य नैवेद्य, दिव्य दीप, दिव्य धूप, दिव्य फल आदि से नित्यकाल अर्चा करते थे, पूजा करते थे, नमस्कार करते थे और निर्वाण कल्याणक की पूजा करते थे, मैं भी यहाँ रहकर अष्टद्रव्यों का थाल चढ़ाकर सदाकाल अर्चा करता हूँ, पूजा करता हूँ, वन्दना करता हूँ, नमस्कार करता हूँ, मेरे
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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