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________________ ४०२ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका } और मुनिसुव्रत ये दो तीर्थंकर ( यादवों ) यदुवंश में उत्पन्न हुए हैं ( पार्श्ववीरों उग्रनाथ पार्श्वनाथजी उग्र वंश में तथा भगवान महावीर नाथवंश में पैदा हुए हैं ( शेषा इक्ष्वाकु वंशजाः ) तथा शेष सत्रह तीर्थंकर इक्ष्वाकु वंश में पैदा हुए हैं I भावार्थ - वर्तमान चौबीसी में शान्तिनाथ - कुन्थुनाथ व अरनाथ स्वामी ने कुरुवंश को पवित्र किया। नेमिनाथ व मुनिसुव्रत तीर्थंकरो ने यदुकुल/ यदुवंश को उज्ज्वत किया। पार्श्वनाथजी ने उग्र वंश को प्रसिद्ध किया तथा भगवान महावीर ने नाथवंश का यश फैलाया । शेष सत्रह तीर्थंकर पावन इक्ष्वाकु वंश के कीर्तिस्तंभ हुए । अञ्चलिका इच्छामि भंते! परिणिव्वाणभत्ति काउस्सग्गो कओ तस्सालोचेडं, इमम्मि अवसप्पिणीए चउत्थ समयस्स पच्छिमे भाए, आउट्ठमासहीणे वासचक्कम्मि सेसकालम्मि, पावाए णयरीए कतिय मासस्स किण्ह चडदसिए रत्तीए सादीए, णक्खते, पच्चूसे, भयवदो महदि महावीरो वहुमाणो सिद्धिं गदो । तिसुवि लोएसु, भवणवासिय वाणविंतर जोयिसिय कप्पवासियत्ति चउव्धिहा देवा सपरिवारा दिव्वेण ण्हाणेण दिव्वेण गंधेण, दिवेण अक्खेण, दिव्वेण पुण्फेण, दिव्वेण चुण्पणेण, दिव्वेण दीवेण, दिव्वेण धूषेण, दिव्वेण वासेण, णिच्चकालं अच्छंति, पूर्जति, बंदंति, पामंसंति परिणियाण महाकल्लाण पुज्जं करंति । अहमवि इह संतो तत्य संताइयं णिच्चकालं, अच्चेमि, पुज्जेमि, वंदामि, णमस्सामि, दुक्खक्खओ, कम्मक्खओ बोहिलाहो सुगइगमणं, समाहि-मरणं जिणगुणसंपत्ति होउ मज्झं । अर्थ - ( भंते! ) हे भगवन्! मैंने ( परिणिव्वाणभत्ति काउस्सागो कओ ) परिनिर्वाणभक्ति सम्बन्धी कायोत्सर्ग किया ( तस्स आलोचेउं इच्छामि ) उसकी आलोचना करने की इच्छा करता हूँ | ( इमम्मि अवसप्पिणीए चउत्थ समयस्स पच्छिमे भाए, इस अवसर्पिणी सम्बन्धी चतुर्थकाल के पिछले भाग में ( आउद्द्रुमासहीणे वासचउक्कम्मि सेसकालम्मि ) साढे तीन माह कम चार वर्ष काल शेष रहने पर ( पावाए ायरीए कत्तियमासस्स किण्हचउद्दसिए रत्तीए सादीए णक्खते पच्चूसे भयवदो महदि महावीरो वमाणो सिद्धि
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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