SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 401
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका के द्वारा ( सुदृब्धानि माल्यानि ) गूंथी हुई सुन्दर मालाओं को ( मानसकरैः आदाय ) मनरूपी हाथों के द्वारा ग्रहण करके ( अभितः ) चारों ओर ( किरन्तः ) बिखरते हुए ( इमे ) ये ( वयम् ) हम ( भगवन् निषद्या: आदृतियुता पयेम ) भगवन्तों को निर्वाणभूमियों की आदरसहित परिक्रमा प्रदक्षिणा करते हैं तथा ( ता: परमां गति सम्प्रार्थिता ) उनसे उत्तम सिद्धभूमि, सिद्धगति की प्राप्ति की प्रार्थना करते हैं। भावार्थ-वचनों के स्तुतिमयी पुष्पों से गूंथी हुई सुन्दर आपके गुणरूपी मालाओं को मनरूपी हाथों से ग्रहण करके, चारों ओर बिखरते हुए, हम २४ भगवान् की समस्त निर्वाणभूमियों की आदरसहित परिक्रमा करते हैं तथा उनसे ( भगवन्तों से ) शाश्वत सुख का स्थान सिद्धभूमि की प्राप्त करने की प्रार्थना करते हैं। हे प्रभो ! सिद्ध भगवन्तों की निर्वाणभूमियों की भक्ति- पूर्वक वन्दना करने वाले हमें सिद्धपद की प्राप्ति हो। नुञ्जये मातरे मिजातिमाः, पण्डोः सुताः परमनिवृतिमभ्युपेताः । तुंग्यां तु संगरहितो बलभद्रनामा, नद्यास्सटे जिनरिपुछ सुवर्णभद्रः ।। २८।। द्रोणीमति प्रबलकुण्डल मेढ़के च, वैभारपर्वततले वरसिद्धकूटे । ऋष्यद्रिके च विपुलाद्रिबलाहकेच, विन्ध्ये च पोदनपुरे वृषदीपके च ।। २९।। सह्याचले च हिमवत्यपि सुप्रतिष्ठे, दण्डात्मके गजपथे पृथुसारयष्टौ । ये साधवो हतमलाः सुगति प्रयाताः, स्थानानि तानि जगति प्रथितान्य भूवन् ।। ३०।। अन्वयार्थ ( दमित अरिपक्षा: पण्डोः सुताः ) शत्रु पक्ष को नष्ट करने वाले पाण्डुपुत्र पाण्डव ( शत्रुञ्जये नगवरे परमनिर्वृत्तिम्-अभ्युपेताः) शत्रुञ्जय नामक श्रेष्ठ पर्वत पर निर्वाण को प्राप्त हुए ( संग रहित: बलभद्रनामा तु तुम्यां ) समस्त परिग्रह से रहित बलभद्रनामा मुनि तुङ्गीगिरि से तथा ( जितरिपुः सुवर्णभद्रः ) कर्मशत्रुओं को जीतने वाले मुनि सुवर्णभद्र ( नद्याः तटे) नदी के किनारे से मुक्ति को प्राप्त हुए ।
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy