SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 383
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ३७९ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका अहमित्यक्षरं ब्रह्म, वाचकं परमेष्ठिनः । सिद्धचक्रस्य सट्ठीजं, सर्वतः प्रणिदध्महे ।।११।। अन्वयार्थ—हम ( ब्रह्म-वाचकं ) शुद्ध आत्म स्वरूप का कथन करने वाले ( सिद्ध-चक्रस्य परमेष्ठिनः ) सिद्ध परमेष्ठी के समूह के अथवा सिद्ध परमेष्ठी के ( सीजं ) समीचीन उत्तम बीजाक्षर ( अहम् ) अहम् ( इति अक्षर ) इस अक्षर का ( सर्वतः ) पूर्ण रूप से ( प्रणिदध्महे ) ध्यान करते हैं। भावार्थ हम सिद्ध परमेष्ठी के ब्रह्मवाचक अर्हम् बीजाक्षर का सदा ध्यान करते हैं । तात्पर्य “अर्हम्' एक बीजाक्षर है। यह बीजाक्षर आत्मा के शुद्ध स्वरूप का वाचक है तथा शुद्ध आत्मतत्त्व की प्राप्ति करने वाले अनन्त सिद्धों का वाचक है । ऐसे इस बीजाक्षर का हम ध्यान करते हैं। [ समस्त भव्यात्माओं को भी इसका ध्यान अवश्य करना चाहिये ।] कर्माष्टकविनिर्मुक्त, मोक्षलक्ष्मीनिकेतनम् । सम्यक्त्वादि गुणोपेतं, सिद्धचक्रं नमाम्यहम् ।।१२।। अन्वयार्थ ( कर्माष्टक-विनिर्मुक्तं ) अष्टकर्मों से पूर्ण रहित ( मोक्षलक्ष्मीनिकेतनम् ) मुक्ति लक्ष्मी के घर तथा ( सम्यक्त्व-आदि गुण-उपेतं ) सम्यग्दर्शन आदि गुणों से युक्त ( सिद्धचक्रं ) सिद्ध परमेष्ठियों के समूह को ( नमामि ) मैं नमस्कार करता हूँ। भावार्थ-जिन्होंने ज्ञानावरण कर्म के क्षय अनन्तज्ञान, दर्शनावरण के क्षय से अनन्तदर्शन, वेदनीय कर्म के क्षय से अव्याबाधत्व, मोहनीय के क्षय से अनन्तसुख, आयु के क्षय से अवगाहनत्व, नामकर्म के क्षय से सूक्ष्मत्त्व, गोत्रकर्म के क्षय से अगुरुलधुत्व तथा अन्तराय कर्म के क्षय से अनन्त वीर्य इस प्रकार आठ कर्मों के क्षय से आठ महागुणों को प्रकट कर लिया है, जो मोक्ष लक्ष्मी के घर, आलय, स्थान हैं ऐसे सिद्ध समूह, अनन्त सिद्ध परमेष्ठी भगवन्तों को मैं नमस्कार करता हूँ। आकृष्टिं सुरसंपदां विदधते, मुक्तिनियो वश्यताम्, उच्चाटं विपदा चतुर्गतिभुवां, विद्वेषमात्मैनसाम् । स्तम्भ दुर्गमनं प्रति प्रयततो, मोहस्य सम्मोहनम्, पायात्पञ्च नमस्क्रियाक्षरमयी, साराधना देवता ।।१३।।
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy