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________________ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका ३६७ सिंहासन, एक योजन तक सुनाई देने वाली भव्यों के कल्याणदायिनी दिव्यध्वनि, तीन छत्र, दोनों ओर ३२- २ ऐसे ६४ चंवर और भामण्डल के अप्रतिम तेजयुक्त आपदाओं से सदा सुशोभित रहते हैं, उनके भी चरणों में मेरा नमस्कार है । शंका- तीन छत्र किस विशेषता के परिचायक हैं, उन्हें अरहंत प्रतिमा के ऊपर किस प्रकार लंगाना चाहिये । भगवान के सिर पर तीन छत्र तीन लोक के स्वामीपने को सूचित करते हैं ( सबसे नीचे अधोलोक के स्वामीपने का परिचायक सबसे बड़ा छत्र, मध्य में मध्यलोक के स्वामीपने का परिचायक उससे छोटा और ऊर्ध्वलोक के स्वामित्व का परिचायक अन्त में सबसे छोटा छत्र लगाना चाहिये । तं जगदर्चित शान्ति जिनेन्द्रं, शान्तिकरं शिरसा प्रणमामि । सर्व गणाय तु यच्छतु शान्ति, मह्यमरं पठते परमां च ।।१२।। - अन्वयार्थ – ( शान्तिकरं ) शान्ति को करनेवाले ( तं ) उन ( जगत् अर्चितं ) तीनों लोकों के जीवों से पूज्य (शान्तिजिनेन्द्र ) शान्तिनाथ भगवान को ( शिरसा प्रणमामि ) मैं मस्तक झुकाकर प्रणाम करता हूँ । ( सर्वगणाय ) समस्त समूह को ( शान्ति यच्छतु ) शान्ति दीजिये (तु) और ( पढ़ते मह्यं ) स्तुति पढ़ने वाले मुझे ( अरं परमां च ) शीघ्र तथा उत्कृष्ट शान्ति दीजिये । भावार्थ-तीन जगत् के वन्दनीय, सर्वजीवों के लिये शान्ति को देने वाले शान्तिनाथ भगवान को मैं सिर झुकाकर प्रणाम करता हूँ । हे शान्तिनाथ भगवन्! समस्त समूह को शान्ति प्रदान कीजिये तथा स्तुति पाठक मुझ पर विशेष कृपा दृष्टिकर शीघ्र ही उत्कृष्ट शान्ति प्रदान कीजिये । वसन्ततिलका येऽभ्यर्चिता मुकुट - कुण्डल- हार-रत्नैः, शक्रादिभिः सुरगणैः स्तुत- पादपद्माः । ते मे जिना: प्रवर- वंश - जगत्प्रदीपाः, तीर्थंकराः सतत शान्तिकरा भवन्तु ।। १३ ।।
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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