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________________ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका ३४५ प्रशंसनीय हैं, तीन गारत रूप अहंकारों से रहित उन आचार्य परमेष्ठी भगवन्तों को मेरा नमस्कार है । तरुमूलयोगयुक्ता- नवकाशातापयोगराग सनाथान् । बहुजन हितकर चर्या - नभयाननघान्महानुभाव विधानान् ।। ९ । । अन्वयार्थ - जो (तरुमूल योग- युक्तान् ) वर्षा काल में वृक्ष के नीचे ध्यान कर "तरुमूलयोग" को धारण करते हैं ( अवकाश-आतपयोग-राग-सनाथान् ) शीतकाल में खुले आकाश में ध्यान कर अभ्रावकाश योग व ग्रीष्मकाल में सूर्य के सम्मुख खड़े हो ध्यान करते हुए आतापन योग सम्बन्धी राग से सहित हैं ( बहुजन हितकर - चर्यान् ) जिनकी चर्या अनेक जनों का हित करने वाली है, जो ( अभयान् ) सप्त प्रकार के भयों से रहित हैं ( अनघान् ) जो पापों से रहित हैं ( महानुभाव - विधानान् ) जो बहुत भारी प्रभाव से युक्त हैं, उन आचार्य परमेष्ठी भगवन्तों को मैं नमस्कार करता हूँ । भावार्थ — जो आचार्य परमेष्ठी वर्षाकाल में वृक्षों के नीचे जहाँ पानी की एक-एक बूँद तलवार की तीक्ष्ण धारा सम गिर रही हैं, ध्यान करते हैं, शीत ऋतु में खुले आकाश में ध्यान कर अभ्रावकाशयोग की साधना करते हैं, ग्रीष्म ऋतु में आतापन योग धारण करते हैं, ऐसे त्रियोगों को धारणा में ही जिनका अनुराग सदा लगा रहता है, जिनकी चर्या बहुत लोगों का उपकार करने वाली हैं, जो निर्भय हो सदा विचरण करते हैं, जो पाँचों पापों से सर्वथा रहित हैं, जिनका लोक में बहुत भारी प्रभाव है, ऐसे आचार्य परमेष्ठी को मेरा नमस्कार हो । ईदशगुणसंपन्नान् युष्मान्भक्त्या विशालया स्थिरयोगान् । विधिनानारतमप्रधान्- मुकुलीकृतहस्तकमल शोभित शिरसा ।।१०।। अभिनौमि सकलकलुष, प्रभवोदय जन्म जरामरण बंधन मुक्तान् । शिवमचल मन धमक्षय- मव्याहत मुक्ति सौख्यमस्त्विति सततम् ।। ११ । । अन्वयार्थ -- ( ईदृशगुण सम्पन्नान् ) इस प्रकार ऊपर कहे गुणों से युक्त ( स्थिर-योगान् ) जो स्थिर योगी हैं अथवा मन-वचन-काय तीनों योग जिनके स्थिर हैं अथवा जो स्थिर ध्यान के धारक हैं, ( अनारतम् ) जो निरन्तर ( अग्रयान् ) लोकोत्तर हैं तथा ( सकल - कलुष - प्रभव- उदय
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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