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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका इन्द्र-धनुष से चित्रित ( भीमखैः ) भयंकर गर्जना करने वाले ( विसृष्टचण्ड-अशनि-शीतल-वायु-वृष्टिभिः ) प्रचण्ड वज्र, शीतल हवा व वर्षा को छोड़ने वाले ऐसे ( जलदै: ) मेघों के द्वारा ( स्थगितं ) आच्छादित ( गगनतलं विलोक्य ) आकाश तल को देखकर ( तपोधनाः ) तपस्वी मुनिगण ( सहसा ) शीघ्र ही ( विशङ्क) भयरहित हो ( पुनरपि ) बारबार ( तरुत्तलेषु ) वृक्षों के नीचे ( आसते ) विराजते हैं।
भावार्थ-वर्षाऋतु में जब बादल घनघोर घटा रूप में छा जाते हैं उस समय का वर्णन करते हुए आचार्य देव यहाँ कहते हैं--वर्षा ऋतु में जो श्याम वर्ण के बादल आते हैं वे मयूर के कण्ठ समान या काजल सम अथवा भ्रमर के समान काले होते हैं, तथा वे बादल अनेक इन्द्र-धनुष से स्थान-स्थान पर सुशोभित रहते हैं, वे बादल भयंकर शब्दों की गर्जना करते हैं, बिजली गिराते हैं, वायु को शीतल करते हैं, घनघोर वर्षा करते हैं, ऐसे भयानक घनघोर घटायुक्त बादलों से आच्छादित आकाश को देखकर भी वं मुनिराज निर्भय होकर बियम रात्रियों में वर्षायोग/वृक्षमूल योग धारण कर निर्भय हो विराजते हैं।
भद्रिका जलधाराशरताडिता, मचलन्ति चरित्रतः सदानृसिंहाः । संसार दुःख भीरवः, परीषहा-राति-घातिनः प्रवीराः ।।६।।
अन्वयार्थ ( जलधाराशरताडिता ) जो जल की धारारूपी बाणों से ताड़ित हैं, ( संसार-दुख-भीख: ) संसार के दुःखों से भयभीत हैं तथा ( परीषह-आराति-घातिनः ) परीषहरूपी शत्रुओं का घात करने वाले हैं, ऐसे ( प्रवीराः ) धैर्यवान आत्मबली ( नृसिंहाः ) श्रेष्ठ मुनिराज ( सदा चरित्रत: न चलन्ति ) सदा चरित्र से विचलित नहीं होते।
___भावार्थ-वर्षा ऋतु में वृक्षमूल योग धारक वे आत्मबलसम्पन्न महामुनिराज जल-धारारूपी बाणों से ताड़ित, संसार के दु:खों से भयभीत परीषहरूपी शत्रुओं का घात करने वाले हैं, वे धैर्यवान, आत्मबली, श्रेष्ठ मुनिराज कभी भी अपने चारित्र से विचलित नहीं होते।