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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका चन्द्रप्रज्ञप्ति है । जिसमें सूर्य की आयु, गति, परिवार आदि का वर्णन हो वह सूर्यप्रज्ञप्ति है । जिसमें जम्बूद्वीप संबंधी सात क्षेत्र कुलाचल आदि का वर्णन है वह जम्बूद्वीप प्रज्ञाप्त है । जिसमें असंख्यात व समुद्रो का वर्णन है वह द्वीपसागरप्रज्ञप्ति है। और जिसमें जीव, अजीव आदि द्रव्यों के स्वरूप का वर्णन है वह व्याख्याप्रज्ञप्ति है।
सूत्र—जिसमें जीव का विस्तृत विवेचन-कर्ता भोक्ता आदि रूप है वह सूत्र है।
प्रथमानुयोग---जिसमें ६३ शलाका पुरुषों का निरूपण है वह प्रथमानुयोग
पूर्वगत---इसके उत्पाद आदि १४ भेद हैं।
चूलिका–इसके पाँच भेद हैं-- जलगता, स्थलगता, मायागता, रूपगता और आकाशगता।
जलगता—इसमें जल में गमन, जल का स्तंभन करने के लिये जो मंत्र-तंत्र आदि कारण हैं उनका वर्णन है। स्थलगता-पृथ्वी पर गमन करने के कारण मंत्र-तंत्र और तपश्चरण आदि का वर्णन इसमें है। मायागताइसमें इन्द्रजाल संबंधी मंत्र-तंत्रों का वर्णन है। रूपगता—इसमें सिंह, व्याघ्र आदि के रूप धारण करने के मंत्र-तंत्रों का वर्णन है तथा आकाशगताइसमें आकाश में गमन करने के कारण मन्त्र-तन्त्र और तपश्चरण आदि का वर्णन है।
पूर्वगतं तु चतुर्दशधोदित-मुत्पादपूर्व-माद्यमहम् । आग्रायणीय-मीडे पुरु-वीर्यानुप्रवादं च ।।१०।। संततमहमभिवन्दे तथास्ति-नास्ति प्रवादपूर्व च । ज्ञानप्रवाद-सत्यप्रवाद-मात्मप्रवादं च ।।११।। कर्मप्रवाद-मीडेऽथ प्रत्याख्यान-नामयेयं च । दशमं विद्याधारं पृथुविद्यानुप्रथादं च ।।१२।। कल्याण-नामधेयं प्राणायायं क्रियाविशालं च । अथ लोकबिंदुसारं वन्दे लोकाग्रसारपदम् ।।१३।। अन्वयार्थ ( पूर्वगतं तु चतुर्दशधा उदितम् ) दृष्टिवाद के ५ भेद हैं