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________________ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका अनुयोगों की वृद्धि होने पर प्राभूत-प्राभृत श्रुतज्ञान होता है । इस ज्ञान के ऊपर एक अक्षर प्रमाण श्रुतज्ञान की वृद्धि होने पर प्राभृत-प्राभृत समास श्रुतज्ञान होता है। चौबीस प्राभृत-प्राभृत का एक प्राभृत श्रुतज्ञान होता है। प्राभृत श्रुतज्ञान के ऊपर एक अक्षर प्रमाण वृद्धि होने पर प्राभृत समास श्रुतज्ञान होता है । सधः ५. १ वरः । २...२ . पृरा होते हैं। पूर्वो में १९५ वस्तुएँ हैं और प्राभृतों का प्रमाण ३९०० है। संक्षेप में कम से कम श्रुतज्ञान को पर्यायज्ञान, इन्द्रियों से ग्रहण में आवे सो अक्षरज्ञान, जिससे अर्थ का बोध हो वह पद ज्ञान, एक गति स्वरूप को प्रकट करने वाला संघात ज्ञान, ४ गतियों के स्वरूप को जानने वाला प्रतिपत्तिक ज्ञान, १४ मार्गणाओं का निरूपक अनुयोग ज्ञान ४ निक्षेप, सत् संख्यादि का कथन करनेवाला प्राभृत-प्राभृत ज्ञान । प्राभृतकप्राभृतक का अधिकार प्राभृत ज्ञान, पूर्व का अधिकार वस्तु और शास्त्र के अर्थ का पोषक पूर्व तथा हर एक के भेदों को समास कहते हैं, इस प्रकार भावश्रुतज्ञान के क्रमिक विकास अपेक्षा २० भेद हैं। श्रुतज्ञान के बारह भेद आचारं सूत्रकृतं स्थानं समवाय-नामधेयं च। व्याख्या-प्रज्ञप्तिं च ज्ञातृकथोपासकाध्ययने ।।७।। वन्देऽन्तकृदश-मनुत्तरोपपादिकदशं दशावस्थम् । प्रश्नव्याकरणं हि विपाकसूत्रं च विनमामि ।।८।। अन्वयार्थ- आचारं सूत्रकृतं स्थानं समवायनामधेयं ) आचाराङ्ग, सूत्रकृताङ्ग, स्थानाङ्ग, समवायाङ्ग ( व्याख्याप्रज्ञप्तिं च ) और व्याख्याप्रज्ञप्ति ( ज्ञातृकथा - उपासकाध्ययने ) ज्ञातृकथा और उपासकाध्ययन को ( वन्दे ) नमस्कार करता हूँ ( अन्तकृद्दशम्-अनुत्तरोप-पादिकदशं दशावर्थ प्रश्नव्याकरणं हि विपाक सूत्रं च ) अन्तकृद्दशांग, अनुत्तरोपपादिक दशांग, प्रश्नव्याकरणाङ्ग, विपाकसूत्र ( च ) दृष्टिवाद इन १२ अंगों को ( विनमामि ) मैं विशेष रूप से नमस्कार करता हूँ। भावार्थ-मुनियों के आचार का वर्णन करने वाला आचाराङ्ग है,
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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