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________________ २८ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका अन्वयार्थ--(-इंदिया जीवा ) दो इन्द्रिय जीव ( असंखेज्जासंखेज्जा ) असंख्यातासंख्यात ( कुक्खि ) कुक्षि ( किमि ) कृमि/लट ( संख) शंख ( खुल्लुय ) क्षुल्लक बाला ( बराउय ) वराटक या कौड़ी ( अक्ख ) अक्ष ( रिदुबाल ) बाल जाति का विशेष जन्तु ( संबुक्क ) छोटा शंख ( सिप्पि ) सीप ( पुलविकाइया ) पुलविक अर्थात् पानी के ओंकार एदेसि , इनको ( १६... उत्तापन ( वरिदावणं ) परितापन ( विराहणं ) विराधन ( उवघादो ) उपघातन ( कदो ) मैंने किया हो ( वा ) अथवा ( कारिदो ) कराया हो ( वा ) अथवा ( कीरंतो समणुमण्णिदो ) करने वाले की अनुमोदना की हो ( तस्स ) तत्संबंधी ( मे ) मेरे ( दुक्कड़ ) दुष्कृत्य ( मिच्छा ) मिथ्या हों। भावार्थ—दो इन्द्रिय कुक्षि, कृमि, शंख आदि जीवों की मैंने विराधना की हो, कराई हो या अनुमोदना की हो तो तत्संबंधी मेरे पाप मिथ्या हो । ते इंदिया जीवा असंखेज्जा-संखेज्जा, कुन्यु हिय-विच्छिय-गोभिंदगोजुव-मक्कुण-पिपीलियाइया एदेसिं उहावणं परिदावणं विराहणं उवघादो कदो वा, कारिदो वा, कीरंतो वा, समणु-मपिणदो तस्स मिच्छा मे दुक्कडं। __ अन्वयार्थ ( कुंथु ) कुन्थु अर्थात् सूक्ष्म अवगाहना धारक कुन्थु जीव ( देहिय ) देहिक ( विच्छिय ) बिच्छू ( गोभिद ) गोभिद ( गोजुव ) गो नँ अर्थात् भैंस आदि के स्तनादि पर लगी रहने वाला "जूं" ( मक्कुण ) खटमल ( पिपीलियाइया) चींटी आदि ( असंखेज्जासंखेज्जा) असंख्यातासंख्यात ( तेइंदिया ) तीन इन्द्रिय ( जीवा } जीव ( एदेसि ) उनका ( उद्दावणं ) उत्तापन ( परिदावणं ) परितापन ( विराहणं ) विराधना ( उवघादो ) उपघात ( कदो ) मैंने किया हो ( वा ) अथवा ( कारिंदो) दूसरों से करवाया हो ( वा ) अथवा ( कीरंतो समणुमण्णिदो ) करने वाले की अनुमोदना की हो ( तस्स ) तो तत्संबंधी ( दुक्कडं ) दुष्कृत ( मे ) मेरे ( मिच्छा ) मिथ्या होवें। भावार्थ हे भगवन् ! मैंने असंख्यातासंख्यात तीन इन्द्रिय जीव कुन्थु, खटमल, मक्कड, लूं आदि का उत्तापन, परितापण, विराधन आदि किया हो, कराया हो, करते हुए की अनुमोदना की हो तो मेरे खोटे कार्य मिथ्या हों।
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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