SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 3
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ वीतरागाय नमः '4 हीलगाय नमः रात्रिक ( दैवसिक) प्रतिक्रमण प्रतिज्ञा सूत्र जीवे प्रमाद - जनिताः प्रचुराः प्रदोषाः, यस्मात् प्रतिक्रमणतः प्रलयं प्रयान्ति । तस्मात् तदर्थ - ममलं, मुनि-बोधनार्थं, वक्ष्ये विचित्र - भव- कर्म - विशोधनार्थम् ।। १ ।। अन्वयार्थ --- ( यस्मात् ) जिस ( प्रतिक्रमणतः ) प्रतिक्रमण से ( जीवे ) जीव में (प्रमाद-जनिताः ) प्रमाद से उत्पन्न ( प्रचुरा: ) अनेक ( प्रदोषाः ) दोष ( प्रलयं ) क्षय को ( प्रयान्ति ) प्राप्त होते हैं । ( तस्मात् ) इसलिये ( तदर्थं ) उनके लिये ( विचित्र - भव-कर्म विशोधनार्थं ) अनेक भावों में उपार्जित कर्मों का विशोधन अर्थात् क्षय करने के लिये यह ( मुनि 1 बोधनार्थम् ) मुनियों को ज्ञान कराने के लिये ( अमलं) विमल/निर्मल प्रतिक्रमण ( वक्ष्ये ) कहूँगा । भावार्थ - जिस प्रतिक्रमण से, जीव के द्वारा प्रमाद से उत्पन्न होने वाले अनेक दोष क्षय को प्राप्त होते हैं, तथा अनेक भवो में उपार्जित कर्मों का क्षण मात्र में नाश होता है। इसलिये मुनियों को संबोधन के लिये, मैं ऐसे मल रहित निर्मल प्रतिक्रमण को कहूँगा । [ यह प्रतिक्रमण के रचयिता श्री गौतम स्वामी का प्रतिज्ञा सूत्र है ] "भूतकालीन दोषों का निराकरण करना प्रतिक्रमण हैं ।" उद्देश्य सूत्र - पापिष्ठेन दुरात्मना जड़धिया मायाविना लोभिना, रागद्वेष- मलीमसेन मनसा दुष्कर्म यन्- निर्मितम् । त्रैलोक्याधिपते जिनेन्द्र ! भवतः श्रीपाद मूलेऽधुना निन्दा - पूर्वमहं जहामि सततं वर्वर्तिषुः सत्पथे । । २ । । -
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy