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________________ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका तदनु जयति श्रेयान्- धर्मः प्रवृद्ध-महोदयः, कुगति-विपथ-क्लेशा-घोसौ विपाशयति प्रजाः । परिणत-नयस्यांगी-भावाद्-विविक्त विकल्पितम्, भवतु भवतस्त्रातृ त्रेधा जिनेन्द्र-वचोऽमृतम् ।। २।। अन्वयार्थ ( तदनु ) अरहंत देव के जयघोष के बाद ( यः ) जो ( प्रजाः ) जीवों को ( कुगति-विपथ-क्लेशात् ) नरक-तिर्यञ्च आदि अशुभ गतियो के खोटे मार्ग सम्बंधी कष्टों से) दुःखों से ( विपाशयति ) बन्धन मुक्त हो जाता है ( प्रवृद्ध महोदयः ) स्वर्ग-मोक्ष रूप अभ्युदय को देने वाला ( श्रेयान् ) कल्याणकारी है ऐसा { असौ धर्मः ) यह धर्म/वीतराग अहिंसामयी यह जिनधर्म ( जयति ) जयवंत रहता है। जिनधर्म के पश्चात् ( परिणतनयस्य ) विविक्षित नय अर्थात् द्रव्यार्थिक-पर्यायार्थिक के ( अंगीभावात् ) स्वीकृत करने से ( विविक्त विकल्पितं ) अंग व पूर्व के भेदों युक्त अथवा द्रव्य-पर्याय के भेद से युक्त ( त्रेधा ) उत्पाद, व्यय, धौव्यात्मक अर्थात् तीन प्रकार के वस्तु स्वरूप का निरूपण करने वाले अथवा ११ अंग, १४ पूर्व और अंग बाह्य के भेद से तीन प्रकार अथवा शब्द-अर्थ-ज्ञान के भेद से तीन प्रकार के ( जिनेन्द्र-वच: अमृतम् ) जिनेन्द्र भगवान के अमृत तुल्य वचन ( भवतः ) संसार से ( त्रातृ ) रक्षा करने वाले ( भवतु ) हो । भावार्थ--जो जीवों को संसार के दुःखों से छुड़ाकर उत्तम सुखों को प्राप्त करावे वह धर्म है। धर्म के प्रभाव से जीव बलदेव, चक्रवर्ती, तीर्थकर, मंडलीक, महामंडलीक, स्वर्ग और मुक्ति को प्राप्त करता है। जिस धर्म के प्रभाव से जीवों के हिंसादि पाप मिथ्यात्व, कषाय आदि कुभावों/ दुर्भावों का अभाव होता है तथा नरकादि गतियों में जाने का मार्ग बन्द हो जाता है ऐसा अहिंसामयी जैनधर्म सदा जयशील हो। ___जिनधर्म की प्राप्ति जिनेन्द्रकथित वाणी-जिनवाणी से होती है। जिसप्रकार अमृत-पान करने वाले जीव का शरीर पुष्ट होता है उसी प्रकार जिन वचन रूपी अमृत का पान करने वाले भव्यात्मा ज्ञानामृत से पुष्ट हो नरकादि के दुखों से बच जाते हैं। जो जिनेन्द्रवाणी सप्तभंगमयी, सप्तनयों अथवा द्रव्यार्थिक-पर्यायार्थिक नयों से पुष्ट है । द्रव्य-गुण-पर्याय का विवेचन करने वाली, उत्पाद-व्यय-धोव्यात्मक वस्त स्वरूप का निरूपण करने
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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