SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 266
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २६२ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका से अगुरुलघुत्व और वेदनीय कर्म के नाश से अव्याबाधत्व इन चार गुणों से और ज्ञानावरण, दर्शनावरण, मोहनीय व अन्तराय के क्षय से प्रकट हुए क्षायिक ज्ञान, क्षायिक दर्शन, क्षायिक सम्यक्त्व और क्षायिक वीर्य अनन्त चतुष्टय इन आठ गुणों से शोभायमान होते हैं। समस्त धातिअघाति कर्मों का क्षय होते होते ही उर्ध्वगमन स्वभाव होने से एक समय में ही ७ राजू ऊपर लोकाग्र पर स्थित तनुवातवलय में ४५ लाख योजन सिद्धालय में जा सदा के लिये विराजमान हो जाते हैं। सिद्धक्षेत्र पर समस्त सिद्धपरमेष्ठियों के शिर लोक से स्पृष्ट रहते हैं और शेष भाग अपनी अवगाहना के अनुसार नीचे रहता है। विशेष— अन्याकाराप्ति-हेतु-र्न च, भवति परो येन तेनाल्प-हीनः । प्रागात्मोपात्त-देह-प्रति- कृति-रुचिराकार एव ह्यमूर्तः । क्षुत्-तृष्णा-श्वास-कास-ज्वर मरण-अरानिष्ट-योग-प्रमोहव्यापत्त्याधु-सुःख-प्रभव-मय-हते: कोऽस्य सस्थस्यमाः ।।६।। अन्वयार्थ---( च ) और ( येन ) जिस कारण से उन सिद्ध भगवन्तों के ( पर: ) दूसरा कोई ( अन्य-आकार-आप्ति हेतुः न ) अन्य आकार की प्राप्ति का कारण नहीं है ( तेन ) इस कारण से ( अल्पहीन: ) किंचित् कम (प्राक्-आत्मा-उपात्त-देह-प्रतिकृति-रुचिर-आकार एवं भवति ) पूर्व में आत्मा के द्वारा ग्रहण किये शरीर के प्रतिबिंब समान सुन्दर आकार ही होता है। तथा वह ( हि अमूर्तिः ) निश्चय से अमूर्तिक होता है। और (क्षुत्तृष्णा-श्वास-कास-ज्वर-मरण-जरा-अनिष्ट-योग-प्रमोह-व्यापत्त्यादि-उग्रदुःख-प्रभव-भवहते: ) भूख, प्यास, श्वास, खांसी, बुखार, मरण, बुढ़ापा, अनिष्ट संयोग, प्रकृष्टमूर्छा, विशेष आपत्ति आदि भयंकर दु:खों की उत्पत्ति का कारणभूत संसार का अभाव होने से ( अस्य ) इन सिद्ध परमेष्ठी के ( सौख्यस्य) सुख का ( माता) जानने वाला अथवा परिमाण (क: ) कौन हो सकता है अर्थात् उनके सुख को कोई नहीं जान सकता, वह सुख अपरिमेय है। भावार्थ-मनुष्य जिस शरीर से मुक्त होता है, वह उसका अन्तिम
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy