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________________ विमल मा अपोधिनी डोका २६१ छिन्दन् शेषा-नशेषान्-निगल-बल-कलौं-स्तैरनन्त- स्वभावैः, सूक्ष्मत्वाश्यावगाहागुरु-लघुक-गुणैः क्षायिकैः शोभमानः । अन्य-श्चान्य-व्यपोह-प्रवण-विषय-संप्राप्ति-लब्धि-प्रभावैरूष-म्रज्या स्वभावात्, समय-मुपगतो धाम्नि संतिष्ठतेऽनये ।।५।। अन्वयार्थ—वे अरहंत देव ( शेषान् ) बारहवें गुणस्थान में क्षय की गई घातिया कर्मों की प्रकृतियों से बची हुई ( अशेषान ) समस्त अघातिया कर्मों की प्रकृतियों को जो (निगलबलकलीन् ) बेड़ी के समान बलवान हैं ( छिन्दन् ) नष्ट करते हुए/क्षय करके ( तैः अनन्तस्वभावै: ) उन अनन्त/ अविनाशी स्वभाव को धारण करने वाले सम्यग्दर्शन आदि गुणों से (शोभामान: ) शोभायमान होते हैं । ( च ) और ( अन्यैः ) इसके ( क्षायिकैः ) कर्मों के अत्यन्त क्षय से उत्पन्न होने वाले ( सूक्ष्मत्त्वाग्रयावगाहा-गुरुलधुगुणैः ) सूक्ष्मत्व, अवगाहनत्व, अगुरुलघुत्व आदि गुणों से ( शोभायमान ) सुशोभित होते हैं एवं ( अन्य-व्यपोह-प्रवण-विषय-संप्राप्ति-लब्धि-प्रभावः) अन्य कर्म प्रकृतियों के क्षय से प्रकट शुद्ध आत्मस्वरूप की प्राप्ति रूप लब्धि के प्रभाव से ( शोभमान: ) शोभायमान होते हैं । पश्चात् ( उर्ध्वव्रज्यास्वभावात् ) उर्ध्वगमन स्वभाव से { समयम् उपगतः ) एक समय में ही ( अग्रये धाम्नि ) लोक के अग्न भाग/सिद्धालय में ( संतिष्ठते ) समयक् प्रकार से स्थित हो जाते हैं। भावार्थ-अरहंत पद की प्राप्ति पूर्वक ही सिद्ध अवस्था होती है अत: आचार्य देव सिद्ध भगवान की क्रमिक उन्नत अवस्था का वर्णन/स्तवन करते हुए स्तुति करते हैं वे अरहंत भगवान बारहवें क्षीणमोह गुणस्थान के चरम समय तक ६३ प्रकृतियों - घातिया कर्मों की ४७ नामकर्म की १३ और आयु कर्म की ३ प्रकृतियों को क्षय कर चुकते हैं। फिर भी अघातिया कर्मों की ८५ प्रकृतियों की सत्ता बनी रहती हैं। उनमें आयु कर्म बेड़ी के समान कष्टप्रद है संसार में रोकने वाला है । चौदहवे अयोगकेवली गुणस्थान में व्युपरतक्रियानिवर्ती शुक्लध्यान रूपी तीक्ष्ण तलवार के बल से अयोगी जिन उपान्त्य समय में ७२ और अन्त समय में १३ प्रकृतियों क्षय कर कर्मों की सत्ता को जड़ से उखाड़ देते हैं । वे परमात्मा नामककर्म के क्षय से सूक्ष्मत्व, आयु कर्म के क्षय से अवगाहनत्व, गोत्र कर्म के अभाव
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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