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________________ २०८ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका रात्रिभुक्तित्याग ७. ब्रह्मचर्य ८. आरंभत्याग ९, परिग्रहत्याग और १०, अनुमतित्याग और ११. उद्दिष्टत्याग यं नाष्टक श्रावक को ११ प्रतिमा होती हैं। एयासु जहाकहिद-पडिमासु पमादाइकयाइचारसोहणटुं छेदोवट्ठावणं, होउ मज्झं । इन यथाकथित प्रतिमाओं में प्रमाद से अतिचार, अनाचार रूप दोष लगे हों उसकी शुद्धि के लिये मैं उपस्थापना करता हूँ। अरहंत सिद्ध .... मे भवदु। अरहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय, सर्वसाधु इन पाँच परमेष्ठी की साक्षी से सम्यक्त्व, उत्तम व्रतो की दृढ़ता मुझे हो, मुझे हो, मुझे हो । अथ देवसिय ( राइय) पडिक्कमणाए सव्वाइचारविसोहि-णिमित्तं पुल्याइरिय कमेण आलोयण-सिन्धु-भत्ति-काउस्सग्गं करोमि । अथ ( रात्रिक ) दैवसिक प्रतिक्रमण में व्रतों में मन-वचन-काय से लगे सर्व अतिचारों की शुद्धि के लिये पूर्व आचार्यों के क्रम से आलोचना सिद्धभक्ति संबंधी कायोत्सर्ग को मैं करता हूँ। णमो अरहताणं णमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं । णमो उवज्झायाणं पामो लोए सव्यसाहूणं ।। अरहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और लोकवर्ती सर्व वीतरागी निरारंभी साधु परमेष्ठियों को मेरा नमस्कार हो। चत्तारि मंगलं-अरहंता मंगलं, सिद्धा मंगलं, साहू मंगलं केवलिपण्णत्तो धम्मो मंगलं । चत्तारि लोगुत्तमा-अरहता लोगुत्तमा, सिद्धा लोगुत्तमा, साहू लोगुत्तमा, केवलि-पण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमा । चत्तारि सरणं पव्वज्जामि, अरहते सरणं पव्वज्जामि, सिद्धे सरणं पसज्जामि, साहु सरणं पव्वज्जामि, केवलि-पण्णत्तं धम्म सरणं पञ्चज्जामि । लोक में चार मंगल हैं-अरहंत जी, सिद्ध जी, “आचार्य, उपाध्याय साधु" अर्थात् साधु गण और केवली भगवान् के द्वारा कहा गया अहिंसामयी धर्म मंगल है। लोक में अरहंत, सिद्ध, साधु और केवलीप्रणीत धर्म ही उत्तम है, तथा ये ही चारों शरण है।
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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