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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका
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अन्वयार्थ - ( अरहंताणं पामो) घातिया कर्मों से रहित, वीतरागी, सर्वज्ञ, हितोपदेशी अरहंत परमेष्ठी को नमस्कार करता हूँ ( णमो सिद्धाणं ) अष्टकर्मों से रहित सिद्ध परमेष्ठी को नमस्कार करता हूँ ( आइरियाणं ) पंचाचार पोलक आचार्य परमेष्ठी को ( णमो ) नमस्कार करता हूँ ( उवज्झायाणं णमो ) उपाध्याय परमेष्ठी जो ११ अंग १४ पूर्व के पाठी हैं को नमस्कार करता हूँ (लोए सव्वसाहूणं ) अट्ठाईस मूलगुणों से मंडित लोकवर्ती सम्पूर्ण साधुओं को ( णमो ) नमस्कार करता हूँ ।
हप्तारि मंगलं--अरहंता मंगलं सिद्धा मंगलं, साहू मंगलं, केवलिपण्णत्तो धम्मो मंगलं । चत्तारि लोगुत्तमा अरहंता लोगुत्तमा, सिद्धा लोगुत्तमा, साहू लोगुत्तमा केवलि पण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमो । चत्तारि सरणं पव्वज्जामि - अरहंते सरणं पव्वज्जामि, सिद्धे सरणं पव्वज्जामि साहू सरणं पव्वज्जामि, केवलिपण्णत्तं धम्मं सरणं पव्वज्जामि |
अन्वयार्थ – ( चत्तारि मंगलं ) चार मंगल हैं ( अरहंता मंगलं ) अरहंत मंगल हैं ( सिद्धा मंगलं ) सिद्ध मंगल हैं, ( साहू मंगलं ) साधु मंगल हैं ( केवलिपण्णत्तो धम्मो मंगलं ) केवली प्रणीत धर्म मंगल है अर्थात् अरहंत, सिद्ध, साधु और केवली प्रणीत धर्म मंगल रूप हैं, पापों का नाश करने वाले वे सुख को देने वाले हैं । ( चत्तारि लोगुत्तमा) चार लोक में उत्तम हैं - ( अरहंता लोगुत्तमा) अरहंत लोक में उत्तम हैं (सिद्धा लोगुत्तमा) सिद्ध लोक में उत्तम हैं, ( साहू लोगुत्तमा ) साधु लोक में उत्तम हैं ( केवलिपण्णत्तो धम्मो लोगुत्तमो ) केवली प्रणीत धर्म लोक में उत्तम है । ( चत्तारि सरणं पव्वज्जामि ) मैं चार की शरण को प्राप्त करता हूँ ( अरहंते सरणं पव्वज्जामि ) मैं अरहंतों की शरण को प्राप्त करता हूँ (सिद्धे सरणं पव्वज्जामि ) सिद्धों की शरण को प्राप्त करता हूँ ( साहू सरणं पव्वज्जामि ) साधुओं की शरण को प्राप्त करता हूँ (केवलि-पण्णत्तं धम्मं सरणं पव्वज्जामि ) केवलीप्रणीत धर्म की शरण को प्राप्त करता हूँ ।
अड्डाहज्ज - दीव-दो समुद्देसु, पण्णारस-कम्प भूमिसु जाव- अरहंताणं, भयवंताणं, आदिवराणं, तित्ययराणं, जिणाणं, जिणोत्तमाणं, केवलियाणं, सिद्धाणं, बुद्धाणं, परिणिव्वुदाणं, अंतथडाणं, पारगयाणं, धम्माइरियाणं, धम्मदेसगाणं, धम्म- णायगाणं, धम्म- वर चाउरंग- चक्कवट्टीणं, देवाहिदेवाणं, णाणाणं, दंसणाणं, बरित्ताणं, सदा करेमि किरियम्मं ।
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