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________________ विमल ज्ञान प्रवामिनी टीका १७७ अर्थाख्यानों में या ( अणि-योगेसुवा ) अनुयोगों में या ( अणियोगद्दारेसु वा ) अनुयोगद्वारों में ( जे भावा पण्णत्ता ) जो भावा प्रज्ञप्त हैं ( अरहंतेहिं ) अरहंतों ( भयवंतेहिं ) भगवन्तों ( तित्थयरेहिं ) तीर्थंकरों ( आदियरेहिं ) आदि तीर्थ कर्ता ( तिलोय-गाहेहिं ) त्रिलोकीनाथ ( तिलोग बुद्धेहिं ) त्रिलोक ज्ञाता ( तिलोगदरसीहिं ) त्रिलोक दृष्टा हैं ( ते सद्दहामि ) उनमें मैं श्रद्धा करता हूँ ( ते पत्तियामि ) उनमें विश्वास करता हूँ ( ते रोचेमि ) उनमें मैं रुचि करता हूँ ( ते फासेमि ) उनका स्पर्श करता हूँ ( ते सद्दहंतस्स ) उनका श्रद्धान करने वाले ( ते पत्तयंतस्स ) उनका विश्वास करने वाले ( ते रोचयंतस्स ) उनका रुचि करने वाले ( ते फासयंतस्स ) उनका स्पर्श करने वाले ( जो मए ) मेरे द्वारा जो ( पक्खिओ ) पाक्षिक ( चउमासिओ) चातुर्मासिक ( संवच्छरिओ)सांवत्सरिक ( अदिक्कमो ) अतिक्रम( वदिक्कमो) व्यतिक्रम ( अइचारो) अतिचार ( अणाचारो) अनाचार ( आभोग ) आभोग ( अणाभोगो) अनामोग दोष लगा हो { अकाले सज्झाओ ) अकाल में स्वाध्याय किया हो ( कओ काले वा परिहाविदो ) या स्वाध्याय काल में स्वाध्याय नहीं किया हो ( अच्छाकारिदं ) अन्यथा किया हो ( मिच्छा मेलिदं ) मिथ्या के साथ मिलाया हो ( आमेलिदं वा मेलिदं) अन्य अवयव को अन्य अवयव के साथ मिलाकर पढ़ा हो ( अण्णहा-दिण्णं ) अन्यथा कहा हो ( अण्णहा पडिच्छदं ) अन्यथा समझा हो ( आवासएसु पडिहीणदाएं) छ: आवश्यकों में परिहीनता की हो । तस्स मिच्छा मे दुक्कड़ ) तत्संबंधी मेरा दुष्कृत मिथ्या हो। भावार्थ-(णमोकारपदे ) पञ्चनमस्कार णमो अरहताणं आदि पद में, ( अरहंतपदे ) अरहंतपद में, सिद्ध पद में, आचार्य पद में, उपाध्याय पद में, साधु पद में, लोक में चार मंगल हैं--अरहंत, सिद्ध, साधु और जिनधर्म इन चार मंगल पदों में, अरहंत, सिद्ध, साधु और जिनधर्म लोक में उत्तम हैं ऐसे लोकोत्तम पद में, अरहंत, सिद्ध, साधु और जिनधर्म लोक में शरण हैं ऐसे लोक में चार शरण हैं, ऐसे चार शरण पदों में, सर्व सावध विरतोऽस्मि ऐसे सामायिक पद में, आदिनाथ से महावीर पर्यन्त चौबीस तीर्थकर पद में, सिद्धानुभूत आदि और जयत्ति भगवान हेमाम्भोज इत्यादि वन्दना पद में, पडिक्कमामि भंते रूप अथवा दैवसिक, रात्रिक, पाक्षिक,
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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