________________
विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका दस धर्म-उत्तम क्षमा, मार्दव, आर्जव, शौच, सत्य, संयम, तप, त्याग, आकिञ्चन्य और ब्रह्मचर्य ।
अठारह हजार शील-३ योग= मन वचन काय, ३ करण = मन, वचन, काय, ४. संज्ञा, [ आहार, भय, मैथुन और परिग्रह ] ५ इन्द्रियस्पर्शन, रसना, घ्राण, चक्षु और कर्ण ।
प्रकार के 'जील-मुनीसायिक, जललायिक अग्निकायिक, वायुकायिक, वनस्पतिकायिक, दो इन्द्रिय, तीन इन्द्रिय, चार इन्द्रिय और असंज्ञी पंचेन्द्रिय तथा संज्ञी पंचेन्द्रिय ।
१० धर्म = उत्तम क्षमादि ३४३४४४५४ १०x१०-१८००० शील के भेद ।
अशुभ मन, वचन, काय का निराकरण शुभ मन, वचन, काय से किया जाता है अत: तीन को तीन से गुणा करने पर नव भेद होते हैं । इन नौ को चार संज्ञाओं से गुणा करने पर ९४४=३६ भेद होते हैं। इनको पंचेन्द्रिय से गुणा करने पर ३६४५=१८० होते हैं । १८० को १० जीवों से गुणा करने पर १८०x१०=१८०० तथा १८००x१० धर्म से गुणा करने पर १८००x१०= १८००० शील के भेद होते हैं ।
अथवा स्त्री ४ प्रकार की, ३ योग, ३ कृत, कारित, अनुमोदना, ५ इन्द्रिय, शृंगार रस के १० भेद और काय चेष्टा के १० भेद इस प्रकार ४४३४३४५४१०x१०=१८००० शील के भेद ।
अथवा विषयाभिलाषा आदि १० मैथुन कर्म [ विषयाभिलाषा, वस्तिमोक्ष, प्रणीतरससेवन, संसक्त द्रव्य सेवन, शरीरांगोपांगावलोकन, प्रेमिका-सत्कारपुरस्कार, शरीर संस्कार, अतीत भोगस्मरण, अनागत आकांक्षा और इष्ट विषय सेवन] चिन्ता आदि १० अवस्थाएँ [ चिन्ता, दर्शनाभिलाषा, दीर्घ निश्वास, ज्वर, दाह, भोजन में अरुचि, मूर्छा, उन्माद, जीवन-सन्देह, मरण] ५ इन्द्रियाँ, ३ योग, ३ कृत-कारित-अनुमोदना २ जागृत, स्वप्न