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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका
१५ पंचमहाव्रत-पंचसमिति-पंचेन्द्रिय- रोध-पडावश्यकक्रिया-लोचादयो अष्टाविंशति-मूलगुणाः, उत्तम-समा-मार्दवार्जव-शौच-सत्य-संयम-तपस्त्यागाकिंचन्य-ब्रह्मचर्याणि, दश-लाक्षणिको धर्मः, अष्टादश-शीलसहस्राणि, चतु-रशीति-लक्षगुणाः, त्रयोदश-विध चारित्रं, द्वादशविध तपश्चेति सकलं सम्पूर्ण अर्हत्-सिद्धा-चार्योपाध्याय-सर्व-साधु-साक्षिक, सम्यक्त्व-पूर्वकं, दृढ़-व्रतं सुव्रतं समारूढं ते मे भवतु।। ____अन्वयार्थ ( पंचमहाव्रत-पंचसमिति-पंचेन्द्रिय-रोध षडावश्यकक्रिया लोचादयो ) अहिंसा आदि पाँच महाव्रत, ईर्याभाषा आदि पाँच समिति, पाँचों इन्द्रियों का निरोध, समता आदि छह आवश्यक क्रिया और लोच आदि ( अष्टाविंशति-मूलगुणाः ) मुनियों के अट्ठाईस मूलगुण हैं । ( उत्तम. क्षमा मार्दवार्जव-शौच-सत्य-संयम-तपस्स्यागा-किंचन्य-ब्रह्मचर्याणि दशलाक्षणिको धर्मः ) १. उत्तम क्षमा, २. उत्तम मार्दव, ३. उत्तम आर्जव, ४. उत्तम शौच, ५. उत्तम सत्य, ६. उत्तम संयम, ७, उत्तम तप, ८. उत्तम त्याग ९. उत्तम आकिंचन्य और १०, उत्तम ब्रह्मचर्य रूप दसलक्षण धर्म ( अष्टादश-शील-सहस्राणि ) अठारह हजार शील ( चतुरशीति लक्षगुणा) चौरासी लाख गुण ( त्रयोदशविधं चारित्रं ) पाँच महाव्रत, पाँच समिति
और तीन गुप्ति १३ प्रकार का चारित्र ( च ) और ( द्वादशविधं तपः ) बारह प्रकार का तप ( इति ) इस प्रकार ( सकलं ) सम्पूर्ण उत्तम व्रत ( अर्हत्सिद्धाचायों-पाध्यायसर्वसाधुसाक्षिकं ) अरहंत, सिद्ध, आचार्य, उपाध्याय और सर्वसाधु-इन पञ्चपरमेष्ठी की साक्षी से ( सम्यक्त्वपूर्वकं ) सम्यक्त्वपूर्वक ( मे ) हमारे लिये ( ते ) तुम्हारे लिये ( दृढव्रतं ) दृढव्रत ( सुव्रतं ) सुव्रत ( समारूढं भवतु ) समारूढ़ होवें।
भावार्थ-पाँच महाव्रत, पाँच समिति, पाँच इन्द्रिय निरोध, छह आवश्यक तथा लोच, अचेलकत्व, अदन्तधावन, भूमि शयन, खड़े होकर भोजन करना, दिन में एक बार भोजन करना ये साधु के २८ मूलगुण हैं। उत्तमक्षमादि दसधर्म, अठारह हजार शील के भेद, ८४ लाख उत्तरगुण, तेरह प्रकार का चारित्र और बारह प्रकार का तप ये सब उत्तम व्रत अरहन्त, सिद्ध, आचार्य उपाध्याय और सर्वसाधु-इन पाँचों परमेष्ठियों की साक्षी से सम्यक्त्वपूर्वक हमारे और तुम्हारे लिये ये व्रत दृढ़ होवें ।