________________
विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका
१७५
अन्वयार्थ - ( संजमतवट्ठिदाणं ) संयम और तप में स्थित ( णिग्गंथाणं महरिसीणं ) निर्ग्रन्थ महर्षियों के लिये ( एसो पडिकमणविही ) यह द्रव्य और भाव दोनों प्रकार की प्रतिक्रमण विधि ( सव्वेहिं जिणवरेहिं ) सभी चतुर्विंशति तीर्थंकरों ने ( पण्णत्तो ) कही है।
अक्खर पयस्थ-हीणं मत्ता हीणं च जं भवे एत्थ ।
-
तं खमउ णाण देवय ! देउ समाहिं च श्रहिं च ।। ६ ।।
-
अन्वयार्थ - ( अक्खर पयत्थहीणं ) अक्षर, पद, अर्थ से हीन ( च ) और (मत्ताही ) मात्रा से हीन (जं ) जो ( भवे एत्थ ) यहाँ हो ( तं ) उसे ( णाण देवय ! ) हे श्रुतदेवि ( खमउ ) क्षमा करो (च ) और (मे ) मुझे ( समाहिं ) रत्नत्रय (च ) ( बोहिं ) बोधि ( देउ ) दो ।
काऊण णमोक्कारं अरहंताणं तहेव सिद्धाणं । आइरिय उवज्झायाणं लोयम्मि व सव्वसाहूणं ।। ७ ।।
अन्वयार्थ - ( लोयम्मि ) लोक में ( अरहंताणं ) सब अरहंतों को ( तहेव ) उसी प्रकार (सिद्धाणं ) सब सिद्धों को ( आइरिय-उवज्झायाणं ) सब आचार्यों को, सब उपाध्यायों को ( य ) और ( सव्वसाहूणं ) सब साधुओं को ( णमोक्कार काऊण ) नमस्कार करके
इच्छामि भंते! पडिक्कमणमिदं, सुत्तस्स, मूलपदाणं, उत्तर- पदाणमच्यासणदाए तं जहा
अर्थ- हे भगवन् ! सूत्र के मूल पदों की और उत्तर पदों की अवहेलना होने से जो कोई दोष उत्पन्न हुआ है उसका निराकरण करने के लिये यह प्रतिक्रमण करने की इच्छा करता हूँ । उसी को कहते हैं ...
पदादि की अवहेलना संबंधी प्रतिक्रमण
-
णमोक्कारपदे, अरहंतपदे, सिद्धपदे, आइरियपदे, उवज्झाय-पदे, साहू - पदे, मंगल- पदे, लोगोत्तम पदे, सरण पदे, सामाइय पदे, चठवीसतित्ययर पदे, वंदण - पदे, पडिक्कमण पदे, पच्चक्खाण-पदे, काउस्सग्गपदे, असीहिय-पदे, निसीहिय- पदे, अंगंगेसु, पुवंगे, पइण्णासु, पाहुडे, पाहुड- पाहुडेसु, कदकम्मेसु वा, भूद कम्मेसु वा णाणस्स अक्कमणदाए, दंसणस्स अक्कमणदाए,
चरितस्स अइक्कमणदाए, तवस्स
M
-