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________________ १७० विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका ठ अणुव्रत सभी व्रतधारियों के सम्यक्त्वपूर्वक दृढ़वत हो, सुव्रत हों। मैं और शिष्य इस व्रत में आरूढ़ हों ॥ ते मे भवतु ||२|| षष्ठं अणुव्रतं सर्वेषां षष्ठं अणुव्रतं सर्वेषां से मे भवतु || २ || णमो अरिहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं । णमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्व साहूणं ।। १॥ णमो अरहंताणं. ....... णमो लोए सव्वसाहणं णमो अरहंताणं. ....... णमो लोए सव्वसाहूणं ।। ३ । । २। ! चूलिका चूलियंतु पवक्खामि भावणा पंचविसदी । पंच पंच अणुष्णादा एक्केक्कम्हि महव्वदे । । १ । । अन्वयार्थ - चूलियंतु पवक्खामि ) चूलिका को कहता हूँ ( भावणा ) भावना ( पंचविसदी ) पच्चीस हैं ( एक्केक्कम्हि महव्वदे ) एक-एक महाव्रत में (पंच-पंच ) पाँच-पाँच ( अणुण्णादा ) स्वीकार की गई हैं। चूलिका– उक्त अनुक्त और दुरुक्त का कथन करने वाली चूलिका कहलाती है | [ उक्त याने कहा हुआ, अनुक्त याने नहीं कहा हुआ तथा दुरुक्त याने कठिन विषय ] -. आचार्य श्री अब पाँच महाव्रतों संबंधी प्रतिक्रमण का वर्णन करने के बाद अब उक्त अनुक्त और दुरुक्त का कथन करने वाली चूलिका का कथन करने की प्रतिज्ञा करते हैं। प्रथमतः पाँच महाव्रतों की रक्षिका पच्चीस भावनाओं का वर्णन करते हुए लिखते हैं कि - भावना २५ हैं उनमें एकएक व्रत की पाँच-पाँच भावनाएँ हैं । ▾ मणगुत्तो वचिगुत्तो इरिया काय संयदो । एसणा-समिदि संजुत्तो पढमं वदमस्सिदो ।। २। अन्वयार्थ --- ( पढमं ) प्रथम ( वदमस्सिदो ) अहिंसाव्रत का आश्रय वाला व्यक्ति (मणगुत्तो ) मन से गुप्त ( वचिगुत्तो ) वचन गुप्त ( इरिया ) ईर्यासमिति अर्थात् चार हाथ जमीन देखकर चलना ( काय संयदो ) शरीर को संयमित रखना और ( एसणासमिदिसंजुत्तो ) एषणा समिति अर्थात्
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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