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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका
स्वयं न ग्रहण करें, न श्रमण के अयोग्य परियह को दूसरों से ग्रहण कराने और न श्रमण के अयोग्य परिग्रह अहण करने वाले दूसरों की अनुमोदना करें |
हे भगवन ! इस परिग्रह त्याग महानत सम्बन्धी अतिचार का मैं प्रतिक्रमण करता हूँ, अपने दोषों की मैं निन्दा करता हूँ, गर्हा करता हूँ । हे भगवन् ! भूतकाल में मेरे द्वारा जो भी राग-द्वेष, मोह के वशीभूत हो स्वयं श्रमण के अयोग्य परिग्रह का ग्रहण किया गया हो, श्रमण के अयोग्य परिग्रह दूसरों से ग्रहण कराया गया हो तथा श्रमण के अयोग्य परिग्रह को ग्रहण करते हुए अन्यों की अनुमोदना की हो तो उसका मैं त्याग करना हूँ। यह पञ्चम परिग्रह त्याग महाव्रत सभी व्रतधारियों के सम्यक्त्वपूर्वक दृढव्रत हो, सुव्रत हो, मैं स्वयं और शिष्यगण इस महाव्रत में आरूढ़ हो
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[ शेष अर्थ प्रथम महाव्रत में देखिये ] पंचमं महाव्रतं सर्वेषां व्रतधारिणां सम्यक्त्वपूर्वकं दृढव्रतं सुव्रतं समारू भवतु ।। १ । ।
ते मे
ते मे भवतु || २ ||
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पंचमं महाव्रतं सर्वेषां पंचमं महाव्रतं सर्वेषां ते मे भवतु || ३ || णमो अरहंताणं णमो सिद्धाणं णमो आइरियाणं । थमो उवज्झायाणं णमो लोए सव्वसाहूणं ।। १ ।। णमो अरहंताणं.......... णमो लोए सव्वसाहूणं ।। २॥
णमो अरहंताणं... णमो लोए सव्वसाहूणं । । ३ । ।
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छठे अणुव्रत रात्रिभोजन का प्रतिक्रमण
अहावरे छडे अणुव्वदे सव्वं भंते! राइ भोयणं पच्चक्खामि जावज्जीवं तिविहेण मणसा वचया कारण से असणं वा, पाणं वा खादियं वा, सादियं वा, कडुयं वा, कसायं वा, आमिलं वा, महुरं वा, लवणं वा, अलवणं वा, सचित्तं था, अचित्तं वा तं सव्धं चव्विहं आहारं, पणेव सयं रतिं भुंजिज्ज, णो अण्णेहिं रत्तिं भुजाविज्ज, णो अण्णेहिं रत्तिं भुंजितं पि समणुमणिज्ज, तस्स भंते! अड़चारं पठिक्कमामि, णिंदामि, गरहामि, अप्पाणं वोस्सरामि ।
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