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________________ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका १६३ अमनोज्ञ रूपों में ( मणुष्णा मणुपणेसु रसेसु) मनोज्ञ-अमनोज्ञ रसों में ( मणुण्णा मणुण्णेसु फासेसु) मनोज्ञ-अमनोज्ञ स्पर्शो में ( सोदिदिय परिणामे ) श्रोत्रेन्द्रिय परिणाम मे ( चक्खिदिय परिणामे ) चक्षु इन्द्रिय परिणाम में ( घाणिदिय परिणामे ) घ्राणेन्द्रिय परिणाम में ( जिब्भिंदिय परिणामे ) जिल्हा इन्द्रिय परिणाम में ( फासिंदिय परिणामे ) स्पर्शन्द्रिय परिणाम में ( गो-इंदिय परिणामे ) नो इन्द्रिय परिणाम में ( अगुत्तेण ) प्रकट रूप से ( अगुत्तिदिएण ) प्रकट रूप इन्द्रियों के द्वारा ( शेव सयं अबंधं सेविज्ज ) न स्वयं ब्रह्म का सेवन करे ( णो अण्णेहिं अबंभं सेवाविज्ज) न दूसरों को अब्रह्म का सेवन करावे ( णो अण्णेहिं अबंभं सेविज्जंतं वि समणुमणिज्ज ) न अन्य अब्रह्म सेवन करते हुए की अनुमोदना करे । ( भंते ! ) हे भगवन् ! ( तस्स ) इस ब्रह्मचर्य व्रत में लगे ( अइचार पडिक्कमामि ) अतिचारों का प्रतिक्रमण करता हूँ ( शिंदामि ) निन्दा करता हूँ ( गरहामि) गर्हा करता हूँ (अध्याणं वोस्रा ) आत्मा से उनका त्याग करता हूँ । भावार्थ -- हे भगवन्! तृतीय अचौर्य महाव्रत के कथन के बाद चतुर्थ ब्रह्मचर्य महाव्रत में सब चेतन अचेतन सम्बन्धी अब्रह्म का मैं जीवनपर्यन्त के लिये मन-वचन-काय से त्याग करता हूँ । उस चतुर्थ महाव्रत में ब्रह्मचर्य व्रत के विनाश के कारणभूत देवी, मानुषी, तिर्यंचिनी व अचेतन स्त्रियों में काष्ठ कर्म - नाचना, हँसना, गाना तथा तुरई व वीणा आदि वाद्यों के बजाने रूप क्रियाओं में प्रवृत्त हुए देव, नारकी मानुषी, तिर्यंच और मनुष्यों की काष्ठ से निर्मित प्रतिमाओं को काष्ठ कर्म कहते हैं, उस काष्ठ कर्म में, चित्रकर्म-पट, कुड्य ( भित्ति ) एवं फलहिका ( काष्ठ का तख्ता ) आदि में नाचने आदि क्रिया में प्रवृत्त देव, नारकी, तिर्यच और मनुष्यों की प्रतिमाओं को चित्रकर्म कहते हैं, क्योंकि चित्र से जो किये जाते हैं वे चित्रकर्म है, उन चित्रकर्मों में पोत्तका अर्थ वस्त्र है उससे की गई मनुष्य, तिर्यंच आदि की प्रतिमाओं का नाम पोतकर्म है, उन पोतकर्मों में । खटिया, मिट्टी, शर्करा ( बालू) व मृत्तिका आदि के लेप का नाम लेप्य है, उससे निर्मित मनुष्य आदि की प्रतिमाएँ लेप्यकर्म कही जाती है, उन लेप्य कर्मों में लयन का अर्थ पर्वत है, उसमें निर्मित
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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