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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका
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थोड़ी या बहुत सूक्ष्म या स्थूल, सचित्त या अचित्त, घर के भीतर रखी हुई या घर से बाहर स्थित, दाँतो के भीतर लगी अशुद्धि को दूर करने के लिये या दन्तान्तर शोधन मात्र भी वस्तु तृण, काष्ठ / लकड़ी, विकृति, मणि आदि अल्पमूल्य या बहुमूल्य की वस्तु को न तो स्वयं ग्रहण करे न अन्य किसी से ग्रहण करावे और न अदत्तग्रहण करते हुए अन्य की अनुमोदना करे ।
हे भगवन् ! मैं इस तृतीय महाव्रत के अतिचार को त्यागता हूँ, अपनी निन्दा करता हूँ, गर्हा करता हूँ और पूर्व में इस व्रत में मैंने जो अतिचार लगे हैं उनका त्याग करता हूँ ।
हे भगवन्! जो भी मेरे द्वारा राग, मोह के वश में स्वयं अदत्त / बिना दिया ग्रहण किया गया अर्थात् बिना दी गई वस्तु ग्रहण की गई हो, अन्य से बिना दी गई वस्तु ग्रहण कराई गई हो या बिना दी गई वस्तु को ग्रहण करते हुए की अनुमोदना की गई हो तो उसका भी मैं त्याग करता हूँ ।
ग्राम - वृत्ति से वेष्टित ग्राम होता है ।
नगर - चार गोपुरों से रमणीय नगर होता है ।
खेट - पर्वत व नदी से घिरा हुआ खेट होता है ।
कट पर्वत से वेष्टित कर्वट कहलाता है ।
मटंब—-जो पाँच सौ ग्रामों में प्रधानभूत होता है उसका नाम मटंब है । पट्टन – जो उत्तम रत्नों की योनि / खान होता है, उसका नाम पट्टन है। द्रोणमुख- समुद्र की वेला से वेष्टित द्रोणमुख होता है और संवाहन - बहुत प्रकार के अरण्यों / जंगलों से युक्त महापर्वत के शिखर पर स्थित संवाहन जानना चाहिये।
[ इस महाव्रत का शेष अर्थ प्रथम महाव्रत में से देखिये ]
" तृतीय अचौर्य महाव्रत सब व्रतधारियों के सम्यक्त्वपूर्वक हो, मैं और शिष्य वर्ग निर्दोष रूप से इस व्रत में समारूढ हो
पामो अरहंताणं णमो लोए सव्वसाहूणं ।। ३
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