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________________ 2: १५६ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका लिंग नहीं है, भूतकाल में वैसा अन्य लिंग नहीं था, न वर्तमान में इससे उत्तम / श्रेष्ठ लिंग कोई है और न भविष्य में कभी भी, कहीं भी किसी भी क्षेत्र में इससे बढ़कर कोई अन्य लिंग होगा । ज्ञान की अपेक्षा, दर्शन की अपेक्षा, चारित्र की अपेक्षा, सूत्र, शील, गुण, तप, नियम, व्रत, विहार, आयतन, आर्जव, लाघव की अपेक्षा और अन्य भी कारणों से व पराक्रम की अपेक्षा इस निर्ग्रन्थ लिंग से श्रेष्ठ अन्य कोई लिंग इस लोक में न अन्य है, न अन्य हुआ है और न भविष्य में होगा। इस निष लिंग में स्थित हुआ मैं श्रमण होता हूँ । प्राणीसंयम और इन्द्रियसंयम में तत्पर संयत होता हूँ । पञ्चेन्द्रिय विषयों से उपरत अर्थात् विरक्त होता हूँ। प्राणी मात्र में रामद्वेष से रहित हो उपशान्त होता हूँ। उपाधि निकृति, वञ्चना, मान, माया, कुटिलता, असत्य से रहित होता हुआ मिथ्यादर्शन, मिथ्याज्ञान और मिथ्याचारित्र से प्रतिविरत होता हूँ । सम्यग्ज्ञान, सम्यग्दर्शन और सम्यग्चारित्र में श्रद्धा करता हूँ । महार्थ, महागुण, महानुभाव, महायश, महापुरुषानुचिह्न ऐसे प्रथम अहिंसा महाव्रत प्राणातिपातविरति लक्षण में व्रत आरोपण होने पर मैं श्रमण होता हूँ। यह प्रथम महाव्रत जीवों की विराधना से रहित हैं, उत्कृष्ट जिनेन्द्रदेव द्वारा प्रणीत आगम में प्रतिपादित है। प्राणातिपात से विरमण रूप यह मेरा महाव्रत अरहंतसाक्षिक, सिद्धसाक्षिक, साधुसाक्षिक, आत्मसाक्षिक, परसाक्षिक और देवतासाक्षिक हैं उत्तमार्थ के लिये है । सर्व महान् आत्माओं के साक्षिक से ग्रहण किया गया मेरा यह महाव्रत सुव्रत हो, दृद्रवत हो अर्थात् निर्दोष व अखंड हो तथा संसार महादुर्गरूप दुखों से निस्तारक हो, संसाररूपसमुद्र में डूबे जीवों को संसार समुद्र से पार लगाने वाला हो, संसार के दुखरूपी महार्णव से तारने वाला हो, महाव्रत का आराधक मैं अनन्त चतुष्टयरूप और शिष्य समुदाय गुणों को प्राप्तकर साधु होवें । इस प्रकार प्रथम महाव्रत को व्रतरूप ग्रहण करने लेने पर उस अहिंसा व्रत में लगे सर्व अतिचारों की विशुद्धि के लिये दैवसिक ( रात्रिक ), पाक्षिक, चातुर्मासिक, सांवत्सरिक, कालनियमानुसार इन कालों में लगने वाले व्रत संबंधी अतीचारों की विशुद्धि के लिये मैं प्रतिक्रमण करता हूँ । ईर्यापथ के अतिचार का, केशलोच के अतिचार का, संस्तर में फलक,
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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