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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका
१५५ लिंग अनुत्तर है अर्थात् इस लोक में निर्ग्रथलिंग से ऊँचा अन्य लिंग नहीं है जो मोक्ष का मार्ग है, यह निपॅथलिंग केवलीसंबंधी है अथवा केवली प्रणीत है। अयोगकेवली में यह लिंग साक्षात् कर्मक्षय का हेतु होने से परिपूर्ण है 1 परिपूर्ण रत्नत्रय रूप निकाय में उत्पन्न हुआ है इसलिये नैकायिक है। सर्वसावध की व्यावृत्ति रूप, एकत्व विभक्त आत्मस्वरूप होने से समय है और समय जिसकी प्राप्ति का हेतु है या समय में होने वाला यह लिंग सामायिक है। यह लिंग निरतिचार निर्दोष होने से संशुद्ध है । अथवा आलोचना आदि प्रायश्चित्तों से विशुद्ध है। माया-मिथ्या-निदान शल्यों से पीड़ित जीवों के तीनों शल्यों का नाश करने वाला है। सिद्धि अर्थात् स्वास्मोपलब्धि की प्राप्ति का मार्ग है । प्रतिसमय असंख्यात गुणश्रेणी रूप निर्जरा का कारण है | अथवा उपशमश्रेणी और क्षपकश्रेणी में आरोहण करने का कारण है । उत्तम क्षमा का मार्ग है । मुक्ति मार्ग है क्योंकि बाह्यअभ्यंतर सर्व परिग्रह के त्याग का कारण है। प्रमुक्तिमार्ग है क्योंकि अर्हन्त अवस्था रूप घातिया कर्मों के क्षय का कारण है। सिद्ध अवस्था रूप सर्व घातिया-अघातिया कर्मों के क्षय का कारण है अत: मोक्षमार्ग है । चतुर्गतिरूप संसार में परिभ्रमण रूप संसार के अभाव का कारण है अत: प्रमोक्ष मार्ग है । चौरासी लाख योनि में भ्रमण के अभाव का उपाय है अत: निर्वाण मार्ग है। परम शाश्वत सुख-शान्ति का उपाय है । सब दुःखों के क्षय का मार्ग है अत: निर्वाण-मार्ग है। सामायिक, छेदोपस्थापना, परिहारविशुद्धि, यथाख्यात आदि विशुद्धि युक्त विशुद्ध चारित्र के धारक पुरुषों के परिनिर्वाण का मार्ग है क्योंकि निग्रंथलिंग अपने चारित्रधारकों को उसी भव में या द्वितीय आदि भवों में मोक्ष प्राप्त करा देता है। यह निग्रंथ दिगम्बर लिंग एक महती धरोहर रत्नत्रय का पिटारा है, इस लिंग में स्थित जीव सिद्धि स्वात्मोपलब्धि को प्राप्त होता है। जीवादि तत्वों का समीचीन बोधकर केवलज्ञान को प्राप्त होता है। सर्व कर्मों से मुक्त हो कृतकृत्य होता है । परिनिवृत्ति को प्राप्त होता है और सभी शारीरिक-मानसिक व आगन्तुक दुःखों का अन्त करता है । मैं ऐसे उस शुद्ध स्वात्मोपलब्धिप्रदाता निग्रंथ लिंग की श्रद्धा करता हूँ, उसी निर्ग्रथ अवस्था में रुचि करता हूँ, उसी अवस्था में श्रद्धा करता हूँ तथा उसी लिंग को प्राप्त करने की भावना करता हूँ, अत: उसी का स्पर्शन करता है । इस निग्रंथलिंग से श्रेष्ठ दूसरा अन्य