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________________ १४० विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका व्याप्त छह द्रव्यों का निरन्तर चिन्तन करने पर भी खेद को प्राप्त नहीं होना मन बल है। यह जिनके हैं वे मनबली हैं। यह मनबल लब्धि तप के प्रभाव से प्राप्त होती है। अन्यथा बहुत वर्षों में बुद्धिगोचर होने वाला बारह अंगों का अर्थ एक मुहूर्त में चित्तखेद को कैसे न करेगा. करेगा ही। ३९. णमो वचिबलीणं-वचनबली ऋषियो/जिनों को नमस्कार हो। तप के माहात्म्य से जि. इस प्रकार का वचनबन उत्पन्न हो गया है कि बारह अंगों का बहुत बार प्रति वाचन करने पर भी खेद को प्राप्त नहीं होते ४०. णमो कायबलीणं--कायबली जिनों को नमस्कार हो । जो तीनों लोको को हाथ की अंगुली से ऊपर उठाकर अन्यत्र रखने में समर्थ हैं वे कायबली जिन हैं। चारित्र विशेष से यह सामर्थ्य प्राप्त होता है । ४१. णमो खीरसवीणं-क्षीरस्रावी जिनों को नमस्कार हो । क्षीर का अर्थ दूध है । विषसहित वस्तु से भी क्षीर को बहाने वाले क्षीरस्रावी कहलाते हैं। हाथरूपी पात्र में गिरे हए सब आहारों को क्षीरस्वरूप उत्पन्न करने वाली शक्ति भी कारण में कार्य का उपचार होने से क्षीरस्रावी कही जाती है। शंका-अन्य रसों में स्थित द्रव्यों का तत्काल ही क्षीर स्वरूप से परिणमन कैसे संभव है ? समाधान-असंभव नहीं, क्योंकि जिस प्रकार अमृत समुद्र में गिरे हुए विष का अमृत रूप परिणमन होने में कोई विरोध नहीं है, उसी प्रकार तेरह प्रकार चारित्र समूह से घटित अंजुलिपुट में गिरे हुए सब आहारों का क्षीर रूप परिणमन होने में कोई विरोध नहीं है ।। ४२. णमो सप्पिसवीणं-सर्पिस्त्रावी जिनों को नमस्कार हो । सर्पिष् का अर्थ घी हैं। जिनके तप के प्रभाव से अंजुलि पुट में गिरे हुए सब आहार घृतरूप परिणमन कर जाते हैं वे सर्पिस्रावी जिन होते हैं। ४३. णमो महुरसवीणं-मधुस्रावी जिनों को नमस्कार हो । मधु शब्द से गुड़, खाँड व शर्करा आदि का ग्रहण किया गया है। क्योंकि
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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