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________________ विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका इनमें कुछ तो बहुत बड़े मल हैं—चमड़ा, हड्डी, रुधिर, मांस, नख और पीव ये महामल कहलाते हैं आहार में इनके आने पर आहार का भी त्याग करें व प्रायश्चित्त भी लेवें । दो, तीन इन्द्रिय, चार इन्द्रिय जीवों का शरीर और बाल आहार में निकलने पर आहार त्यागना चाहिये । तथा कण, कुण्ड, फल, बीज, कंद, मल, दल ये अल्प मल कहलाते हैं, इनके आहार में आने पर भोजन में से इन्हें निकाल सकते हैं यदि निकालना अशक्य हो तो आहार का त्याग कर देना चाहिये। इस प्रकार ४६ दोष रहित, ३२ अन्तराय और १४ मल दोष टालकर उत्तम श्रावक के घर आहार लेना एषणा समिति है। मुनिराज छह कारणों से आहार ग्रहण करते हैं ( श वेदना को करने के लिये मुनियों की वैयावृत्ति करने के लिये (३) छह आवश्यकों को निदोष पालने के लिये (४) संयम की रक्षा के लिये (५) प्राणों की रक्षा के लिये (६) और उत्तम क्षमादि दस धर्मों का पालन करने के लिये। पञ्चेन्द्रिय निरोध १. स्पर्शन-इन्द्रिय निरोध-जीव और अजीव से उत्पन्न हुए कठोर व कोमल आदि आठ भेदों से युक्त सुख और दुख रूप स्पर्श में मोह रागादि नहीं करना स्पर्शन इन्द्रिय निरोध है। २. रसना इन्द्रिय निरोध-अशन, पान, खाद्य और स्वाद्य के भेद रूप पंच रसयुक्त, प्रासुक, निर्दोष, पर के द्वारा दिये गये रुचिकर अथवा अरुचिकर आहार में लम्पटता नहीं होना रसना इन्द्रिय निरोध है । ३. प्राण इन्द्रिय निरोध—जीव और अजीव स्वरूप सुख और दुःख रूप प्राकृतिक तथा पर-निमित्तक सुगंध-दुर्गन्ध में राग-द्वेष नहीं करना घ्राण इन्द्रिय निरोध है। ४. चाइन्द्रिय निरोध-सचेतन और अचेतन पदार्थों के क्रिया, आकार और वर्ण के भेदों में मुनि के जो राग-द्वेष आदि संग का त्याग है वह चक्षु इन्द्रिय निरोध है।
SR No.090537
Book TitleVimal Bhakti
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSyadvatvati Mata
PublisherBharat Varshiya Anekant Vidwat Parishad
Publication Year
Total Pages444
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Devotion
File Size8 MB
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