________________
आमर्द्धि खेलद्धिं प्रजल्ल- विडर्द्धिसर्वद्धि प्राप्तांश्च व्यथादि - हंनृन् ।
-
मनो वच: काय-बलोपयुक्तान्,
-
स्तुवे गणेशानपि तद्-गुणाप्त्यै ।। ७ ।।
अन्वयार्थ - ( आमर्द्धिखेनर्द्धिप्रजनविडार्द्ध) आमर्द्धि, खेल, प्रकृष्ट जल्लऋद्धि, विद्धि ( सर्वर्द्धप्राप्तान् च ) और सर्वऋद्धि प्राप्त ( व्यथा आदि हंतून ) पीड़ा आदि को हरने वाले ( मनः वचः काय बल उपयुक्तान् ) मनोबली, वचन बल काय बल ऋद्धि से युक्त ( गणेशानपि ) गणधर देवों की ( तद् ) उनके ( गुणायै) गुणों की प्राप्ति के लिये ( स्तुवे ) मैं स्तुति करता हूँ ।
1
सत् क्षीरसर्पिर्मधुरामृतद्धन, यतीन् वराक्षीण महानसांश्च ।
प्रवर्धमानांखिजगत् प्रपूज्यान्,
-
स्तुवे गणेशानपि तद्-गुणाप्त्यै ||८||
अन्वयार्थ – ( सत्क्षीरसर्पिर्मधुरामृतद्धन् ) ( सत्क्षीर, सर्पिः मधुर अमृत ऋद्धीन् ) समीचीन क्षीरस्रावी, सर्पिखावी, मधुरस्रावी और अमृतस्त्रावी ऋद्धि के धारक ( वर अक्षीण महानसान् च ) श्रेष्ठ अक्षीण संत्रास और अक्षीण महान ऋद्धियों से ( प्रवर्धमानान् ) सुशोभित ( त्रिजगत्प्रपूज्यान् ) तीन लोक में पूज्य ( यतीन ) यतिराज ( गणेशानपि ) गणधरों की ( तद्गुणाप्त्यै) उनके गुणों की प्राप्ति के लिये (स्तुवे ) स्तुति करता हुँ ।
सिद्धालयान् श्रीमहतोऽतिवीरान्, श्रीवर्धमानद्धि विबुद्धि-दक्षान् । सर्वान् मुनीन् मुक्तिवरा नृषीन्द्रान्,
स्तुवे गणेशानपि तद् गुणाप्त्यै । । १ । ।
·
अन्वयार्थ - ( सिद्धालयान ) सिद्धालय में विराजमान ( श्री महत: अतिवीरान् ) श्री अति महान्, अति वीर ( श्रीवर्द्धमान ऋद्धि, विबुद्धिदक्षान् ) श्री वर्द्धमान ऋद्धि और विशिष्ट बुद्धि ऋद्धि में दक्ष, कुशल ( मुक्तिवरान् ) मुक्तिलक्ष्मी को वरण करने वाले ( सर्वान् मुनीन् ) सब मुनियों को (ऋषि