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विमल झान प्रभाविनी टीका इस प्रकार | मन, वचन, काय इन योगों को सम्यक् प्रकार से निग्रह करना गुप्ति है ( तत्थ मणगुत्ती ) उन तीन गुप्तियों को प्रथम मनगुप्ति [ आर्तध्यान आदि रूप अशुभ परिणामों से मन को रोकना मनगुप्ति है ] का ( अट्टेझाणे ) आर्तध्यान में ( रुद्देझाणे ) रौद्र ध्यान में ( इहलोयसण्णाए ) इस लोक संबंधी आहार आदि संज्ञा में ( परलोयसपणाए ) परलोक संबंधी सुखादि की अभिलाषा में ( आहार सण्णाए ) आहार की वाञ्छा में ( भयसण्णाए) भय संज्ञा में ( मेहुण सण्णाए ) मैथुन संज्ञा में ( परिंग्गहसण्णाएं ) परिग्रह संज्ञा में ( एव ) इस प्रकार इहलोक संज्ञा, परलोक संज्ञा आदि के विषयों में ( जा ) जो ( मणगुत्ती ) मनगुप्ति का मैंने (ण रक्खिया) रक्षण नहीं किया हो ( ण रक्खाविया ) रक्षण नहीं कराया हो ( अपि ) और ( ण रक्खिजंतं वि समणुमण्णिदो ) रक्षण नहीं करने वालों की अनुमोदना भी की हो तो ( तस्स ) मनगुप्ति सम्बन्धी मेरे ( दुक्कडं ) दुष्कृत ( मिच्छा ) मिथ्या हों।
वचन गुप्ति संबंधी दोषों की आलोचना तत्य वचि-गुत्ती इस्थि-कहाए, अस्थ कहाए, भत्त-कहाए, रायकहाए, चोर-कहाए, वेर-कहाए, परपासंड-कहाए, एवमाझ्यासु जा वचि-गुत्ती, ण रक्खिया, ण रक्खाविया, ण रखिज्जतं वि समणुमण्णिदो तस्स मिच्छा मे दुक्कई ।।१३।। ___अन्वयार्थ-( तत्थ ) उन तीन गुप्तियों में ( वचिगुत्ती । विकथा के विषय में वचनों का गोपन/रक्षण करना वचनगुप्ति है तथा उत्सूत्र अर्थात् आगमविरुद्ध भाषा का रोकना तथा गृहस्थों जैसी व्यर्थ भाषा का रोकना या मौन रहना वचन गुप्ति है। किन-किन विकथाओं में वचन का रक्षण करना चाहिये उसी को आगे कहते हैं ( इत्थिकहाए ) स्त्री कथा में-उन स्त्रियों के नयन, नाभि, नितम्ब आदि के वर्णन रूप कथा में ( अत्थकहाए ) धन के उपार्जन, रक्षण आदि के कथन रूप अर्थकथा में ( भत्तकहाए ) भोजन का वर्णन करने रूप भक्त कथा में ( रायकहाए ) राजा की कथा रूप राजकथा में ( चोरकहाए वेरकहाए ) चौरों का वर्णन करने वाली चौर कथा में और विद्वेष या वैर बढ़ाने वाली वैर कथा में { परपासंडकहाए ) दूसरे कुलिंगी, मिथ्यादृष्टियों की चर्चा या कथन करने रूप परपाखंड कथा