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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका
१०५ पंचिंदियाजीवा असंखोजसिंखेन्जी अंडाश्या, पोवाइया, जराइयों, रसाइया, संसेदिमा, सम्मुच्छिमा, उन्भेदिमा, उववादिमा, अवि-चउरासीदि. जोणि-पमुह-सद-सहस्सेसु एदसिं, उद्दावणं, परिदावणं, विराहणं, उवघादो, कदोवा, कारिदो वा, कीरंतो वा, समणुमण्णिदो तस्स मिच्छा मे दुक्कडं ।
[ इन सबका अर्थ दैवसिक प्रतिक्रमण में देखें ]
द्वितीय सत्य महाव्रत के दोषों की आलोचना अहावरे दुष्वे महव्यदे मुसावादादो वेरमणं से कोहेण वा, माणेण वा, मायाए वा, लोहेण वा, राएण वा, दोसैण वा, मोहेण वा, हस्सेण वा, भयेण वा, पदोसेण वा, पमादेण, पेम्मेण वा, पिवासेण वा, लम्जेण वा, गारवेण वा, अणादरेण वा, केण-वि- कारणेण जादेण वा, सव्यो मुसावादो भासिओ, भासाविओ, भासिज्जतो वि समणुमषिणदो तस्स मिच्छा मे दुक्कडं ।।२।।
__ अन्वयार्थ ( आहावरे ) अब अन्य ( दुव्वे ) दूसरे ( महत्वदे) महाव्रत मे ( मुसावादादो वेरमाणे) मृषावाद/असत्य भाषण का त्याग करता हूँ ( से ) वह असत्यभाषण ( कोहेण वा ) क्रोध से अथवा ( माणेण वा ) मान से अथवा ( मायाए वा ) माया से अथवा ( लोहेण वा ) लोभ से अथवा ( राएण वा ) राग से अथवा ( दोसेण वा ) द्वेष से अथवा ( मोहेण वा ) मोह से अथवा ( हस्सेण वा ) हास्य से अथवा ( भएण वा ) भय से या ( पमादेण वा ) प्रमाद से या ( पेम्मेण वा ) प्रेम/स्नेह से या ( पिवासेण वा) पिपासा से या ( लज्जेण वा ) लज्जा से या ( गारवेण वा ) गारव ( महत्वाकांक्षा ) से या ( केण वि कारणेण ) किसी भी कारण से ( जादेण वा ) उत्पन्न होने पर अथवा ( मुसावादादो) असत्य भाषण ( भासिओ) बोला हो ( भासाविओ ) बुलवाया हो ( भासिज्जतो वि समणुमण्णिदो ) असत्य भाषण बोलने वालों की अनुमोदना भी की हो ( तस्स ) तो तत्संबन्धी ( मे सच्चो ) मेरे सभी { दुक्कडं ) दुष्कृत/पाप ( मिच्छा ) मिथ्या हो ॥२॥
तीसरे अचौर्यमहाव्रत के दोषों की आलोचना अहावरे तव्वे महव्यदे अदिण्णा-दाणादो वेरमणं से गामे वा, णयरे वा, खेडे वा, कव्य वा, मड़वे वा, मंडले वा, पट्टणे वा, दोणमुहे वा,