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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका
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( वर वीरिय परिक्कमेण ) वरवीर्य परिक्रम ( जहृत्तमाणंण ) यथोक्तमान ( बलेण ) बल ( वीरियेण ) वीर्य और ( परिक्कमेण ) परिक्रम/पराक्रम । ( तवोकम्मं ) इस पाँच प्रकार तप कर्म का अनुष्ठान करते हुए ( निगूहियं ) तप करने के योग्य वीर्य को छिपाया हो ( ण कई ) नहीं किया हो ( णिसणेण पडिक्कतं ) परीषह आदि से पीड़ित हो उस तप कर्म को छोड़ दिया हो ( परिहात्रिदो ) पूर्ण अनुष्ठान नहीं किया हो ( तस्स ) उस बीर्याचार के परिहापन संबंधी ( मे दुक्कड ) मेरे दुष्कृत्य ( मिच्छा ). मिथ्या हों ।
पाँच प्रकार के वीर्याचार का परिहापन रूप यह आलोचना है तपश्चरण करने में सामर्थ्य प्रकट करना वीर्याचार हैं, सामर्थ्य को छिपा लेना परिहापन है ।
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पाँच प्रकार का वीर्याचार – १. वरवीर्यपराक्रम वीर्य के पराक्रम उत्साह को वीर्यपराक्रम है, उत्कृष्ट वीर्य का पराक्रम वरवीर्यपराक्रम है, इस श्रेष्ठ वीर्यपराक्रम से अनशनादि तप करना चाहिये ।
२. यथोक्तमान - आगम कथित परिमाण से तप करना यथोक्तमान वीर्य है। जैसे आगम में सिक्थमास या चन्द्रायणव्रत की विधि जिस परिमाण से कही हैं उसी परिमाण से करना अथवा कायोत्सर्ग करने की विधि जिस क्रिया में जहाँ जिस प्रकार कही गई है वहाँ उसी प्रकार ९ या ३६ बार आदि णमोकार मंत्र का विधिवत् जाप करके तप करना चाहिये ।
३. बलेन - काल, आहार, क्षेत्र, आदि देखकर शारीरिक बल के सामर्थ्य अनुसार तप करना बलवीर्य है ।
४. वीर्य - स्वाभाविक सहज सामर्थ्य अनुसार तप करना । अर्थात् आत्मशक्ति अनुसार तप करना ।
५. पराक्रम - आगम में कहे गये क्रमानुसार उत्कृष्ट तप करना पराक्रम हैं अथवा परा= उत्कृष्ट, क्रम=क्रम कहा गया है जैसे - मूलगुणों का अनुष्ठान करने वालों को उत्कृष्ट गुणों का अनुष्ठान करना चाहिये विपरीत नहीं इसका नाम पराक्रमवीर्य है ।