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विमल ज्ञान प्रबोधिनी टीका आयारो ) पाँच प्रकार के आचार में जो अतिचार आदि दोष लगा हो, तस्संबंधी ( आलोचे ) आलोचना करने की ( इच्छामि ) मैं इच्छा करता
तत्य णाणायरो अट्ठविहो काले, विणए, उवहाणे, बहुमाणे तहेव अणिण्हवणे, विजण-अत्थ-तदुभये चेदि । णाणायारो अढविहो परिहाविदो, से अक्खर-हीणं वा, सर-हीणं वा, विजण-हीणं वा, पद हीणं वा, अत्थ-हीणं वा, गंथ-हीणं वा, थएसुवा, थुइसु वा, अस्थक्खाणेसुवा, अणियोगेसु वा, अणियोग-हारेसु या, अकाले-सज्झाओ, कदो वा, कारिदो वा, कीरंतो वा, समणुमण्णिदो, काले वा, परिहाविदो, अच्छाकारिद वा, मिच्छा- मेलिदं बा, आ-मेलिदं, वा-मेलिदं, अपणहा-दिण्हं, अण्णहापडिच्छिदं, आवासएसु-परिहीणदाए तस्स मिच्छा मे दुक्कडं ।।१।। ___ अन्वयार्थ-( तत्थ ) उन पाँच प्रकार के आचारों में पहला ( णाणायारो ) ज्ञानाचार ( अट्ठविहो ) आठ प्रकार का है--( काले ) कालाचार ( विणये ) विनयाचार ( उवहाणे) उपधानाचार ( बहुमागे) बहुमानाचार ( लहेव) तथा ( अपिणण्हवणे ) अनिह्नवाचार ( विजण ) व्यञ्जनाचार ( अत्थ ) अर्थाचार ( च ) और ( तदुभये ) उभयाचार ( इदि ) इस प्रकार है । (तस्थ ) उस ( अट्ठविहो णाणायारो) आठ प्रकार के ज्ञानाचार का ( थाएसु) तीर्थंकर, पञ्चपरमेष्ठी या नव देवताओं के गुणों का वर्णन करने वाले स्तवनों में ( वा ) अथवा ( थुईसु ) तीर्थंकर पंचपरमेष्ठी आदि गुणों का वर्णन करने वाली स्तुतियों में ( वा ) अथवा ( अत्थक्खाणेसु) चारित्र और पुराणों रूप अर्थाख्यानों में वा प्रथमानुयोग,करणानुयोग, चरणानुयोग और द्रव्यानुयोगों में ( वा ) अथवा ( अणियोगेसु ) अनुयोगों में ( वा ) अथवा ( अणियोगद्दारेसु ) कृति, वेदना आदि चौबीस अनुयोग द्वारों में ( अक्खरहीणं ) अक्षरहीन ( वा ) अथवा ( सरहीणां ) स्वरहीन ( वा ) अथवा ( पदहीणं ) सुवन्ततिङन्त से रहित ( विजणहीणं ) व्यंजन हीन [ ककारादि व्यञ्जहीन ] ( अत्यहीणं ) अर्थहीन वाक्य, अधिकाररहित अथवा ( गत्थहीणं ) ग्रंथहीन ( वा ) अथवा ( अकाले ) अकाल में उल्कापात संध्या काल आदि में ( सज्झाओ) स्वाध्याय ( कदो ) किया हो ( वा ) अथवा ( कारिदो ) कराया हो ( वा ) अथवा ( कीरतो