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________________ CERISTRADIESIDISP5 विधानुशासन DX5I05250SIDERIN (विष) वत्सनाम के क्लक सहित लंबा (तिल तुंबी) के तेल को उसके आठ गुण स्वरस या जल में सिद्ध के लेप करने से कर्ण पाली बढ़ती है। इयरिपु ह्यगंधोग्र रुग्राजी यष्टि मधुलिका सीसैः, तैलं कर्ण विवौँ सिद्धं वहती फलं स्वरस ॥११०॥ हरिपु (कनेर) हयगंधा (असगंध) उग्रा (वच) रुक (कूट) राजी (राई) यष्टि (मुलेठी) मधु (गिलोय) कासीसै (कसीस) इनको वृहती फल (छोटी पसट कटेली के फल) के रस में सिद्ध किया हुआ तेल कर्णपाली को बढ़ाता है। जल नाग वलातिबला महिषी तक्रोत्थितो उग्रगंधाभिः पिष्टाभिः लिप्ताभिः श्रवण पयोधर विवृद्धिः स्यात् ॥१११॥ जल (नेत्रबाला) नागबला (गंगेरेकी छाल) अति बला ( कघोडावीडवला ) और भैंस के मटे से निकली हुई उग्रगंधा (लहसून) को पीसकर लेप करने से कान और स्तन बढ़ते हैं। लोद्राचगंधा भालात तरु बीज विटाचितं तैलं, प्रवर्द्धटो लिप्तं मुज कार्ग स्तनातिकाज |!११२॥ लोध असंगध भल्लात तरू बीज (भिलावे के बीज ) में पकाये हुए तेल के लेप से भुजा कान और स्तन आदि बढ़ते हैं। राक्तिका बीज वाराही कंद चूर्ण विमिश्रितात्, तक माहिषात् क्षीरात् लिप्तं दो कर्म वर्द्धनं ॥११३॥ रालिका बीज (चिरमी के बीज) बाराही कंद को, भैंस के दूध अथवा छाछ आदि में मिलाकर लेप करने से कान को बढ़ाता है। विषाग्रि मार्ग कुटज दोबारायंड लेपनं, सतैलं दोस्तन श्रोत्र भगलिंग विनं ॥११४॥ वचनागवाला कुष्ठ महिषी नवनीतकै:, लिप्तं स्तन युगं नाट्याः कुंभाकंभनिभं भवेत् ॥११५॥ व्याधी मार्ग कणभांडी राजीनता मषैः लेपः साजापयाः स्त्रीणां स्तन द्वंद्व विवर्धनं ॥११६॥ ಅಡಚಣNS¢£ 5555
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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