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________________ SHORRIDICISIST585 विधानुशासन MOSISTOISTORTOI5015 एला कुष्ट कणा यष्टि मुस्तोग्रा गुलिकाः कृताः, . पूति गंधमपास्यंति वजनाभ्टांतरे तां ॥१०३|| इलायर्थी कूढ़ पीपल पुलहटी नागर मोथा उग्रा (लहसुन) की गोली बनाकर मुँह में रखने से यह दुर्गंध दूर करती है। जाती जल कुसुमपाढा द्विरजनी जंवीर सुरस जंबु पुष्पैः, सिद्धं तैलं कुर्यात् केसर समान गंध वदनं ॥१०४ ।। जाती (चमेली) का जल (रस) कुसुम (फूल) पाढा (पाद) दोनों रजनी (हल्दी) जंबीरी निम्बू का रस और जामुन के फूलों में सिद्ध किया हुआ तेल मुँह में केशर के समान सुगंध उत्पन्न करता चूर्ण सिंदूर विजयातितिणी फल सत्वचा, निहति दंत दौगंध्य मुखे दिन मुरवे प्रतः ॥१०५॥ सिंदूर विजया (भंग) तितिणी फल (इमली) और उसके वल्कल के चूर्ण को मुँह में रखने से मुख की दुर्गध दूर होती है। गंध हन्यांलसुन प्रति निसेवण समुद्भवं गंध, नागलता दल मृष्ट कुष्टं वकुल प्रसून वा |१०६॥ नागर वेलपान का पत्ता नागारमोथा कूट और वकुल (मोलश्री) के फूल लहसुन आदि नहीं खाने योग्य वस्तु के सेवन से पैदा हुई मुँह की दुर्गंध दूर होती है। लेपो माहिषतकोत्थ वाराही कंद रेणुभिः, सप्ताहं धान्य राशि स्थैःकर्ण पालि विवयेत् ॥ १०७॥ भैस के मट्टे से निकाले हुए वाराही कंद के टुकड़ों को एक सप्ताह तक अन्न के ढेर में रखकर उसका लेप कर्णपाली बढ़ाता है। स्टालिप्तं माहिषी क्षीशत गुंजा बीज रजो युतात, तकोत्थ दधि साम्दतात कर्ण पालि विद्धनं ॥१०८|| मुंजा (चोटली) के बीज के चूर्ण को भैस के मढे में डाल कर दही के समान बनने पर निकालकर उसमें भैस का दूध मिलाकर लेप करने से कर्णपाली बढ़ती है। विष कल्क युते लंबा तैलं स्वरशियां भसि, सिद्धमष्ट गुणे कर्ण पालिं कुर्यात वीटासी ॥ १०९॥ COIRISTRISIPASTRISINISTRIS९८५PISIRISTRISPERISPERISM
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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