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________________ STSDISDISTRIES5I05 विद्यानुशासन BASIRI5DISEASOISOIST ज्येष्टा की आराधना करके इस मंत्र को एक पैर से बारह हजार जपे तो उस कन्या को प्राप्त करे। ॐ कमले भद्रहासे रोहिणी मोचनि कन्येयं मे भार्या भवतु ठाठः॥ यक्षी मंत्रणात जाप्यादेतेन साधु सिद्धेन, कन्यां लभते होमान्मधुसिक्त सहस्त्रकरवीरैः ॥ ६१॥ इस यक्षी मंत्र को दस हजार जप से सिद्ध करके मधु में ही किये हुये कनेर के फूलों के एक हजार हवन करने से कन्या की प्राप्ति होती है। ॐ चामुंडे कालि कालि कुमारि भयवन्मे प्रयच्छय ठाठःठः॥ गौरी मंग्रेण युत जप सिद्धेनैक विशंति वाराणं, सव्यंजनान्न पिंड कन्या लाभाय मासमेकं वितरेत् ॥२॥ इस गौरी मंत्र को दस हजार जाप से सिद्ध करके इक्कीस बार जाप कर भोजन तथा अन्न का पिंड कन्या के लाभ के लिए एक मास तकते। जपद हरिद्रा घात्री दूर्वा सिद्धार्थ पद्म केशरैः, कुशरैः बिल्व तुल्य स्थोदश दलैः सं पिष्टैस्तंदुलोपेतैः ॥६३ ।। हल्दी आँवला, दूध सफेद सरसो कमल केशल कुश (दाभ) बिल्व के दस पत्ते और चायलों को पीसकर इस मंत्र से अभिमंत्रित करके अहि अहि सप्त कृत्याः चत्वारिंश दिनानि कन्या द्या, उदत्य मान मूर्तिवरम चिरादेव सालभते ॥५४॥ उससे प्रतिदिन सात बार चालीस दिन तक इच्छित कन्या की मूर्ति बनाकर उसके उबटन करने से उसकी शीघ्र प्राप्ति होती है। संमार्जुनं मंगाना मेरैवो षधैः श्रुमै विहित लक्ष्मीं करोति महती सर्वानप्या मयान जयति उन्हीं उत्तम औषधियों से अपने अंगो में उबटना करने से बड़ी भारी लक्ष्मी की प्राप्ति होती है और सब प्रकार के रोग नष्ट होते हैं। वर्ण मात्रा श्वदंपत्यो रैकी कत्य त्रिभाजिता, शून्यकेन मृति पुंसो नार्या द्वयंकेन निद्दिशत ॥६६॥ CHOISTOIDASTICISISTEPS९७८ PASEXSTOTRICISRTICISODE
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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