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6521510350SIOTSAP15 विधानुशासन 9851065375215ICASCII सूर्य उच्च का होने पर उसकी तरफ मुख करके आधा उदय होने पर अश्व (पीपल) वृक्ष की कील को यदि खेत के बीच में गाड़ देवे तो तुरन्त शत्रुता होती है।
अनुराधायुक्तो पुष्पोत्तर भाद्रपदात्यांशक विधी, मिथुने चोद्यति मध्य क्षेत्रं कील द्रयं निस्वनेत्
॥४९॥ चंद्रमा के अनुराधा पुष्प उत्तरा भाद्रपद या मिथुन राशि में उदय होने पर खेत के बीच में दो कील गाड़ देवे।
क्षेत्रदौ गन्हीया द्योगे त्र ततः फलानि च मदां च, तत क्षेत्रमपद्रोहं नित्यं संपन्न सस्यं स्यात्
॥५०॥ इस योग से खेत फल और उसकी मिट्टी सभी की प्राप्ति होती है तथा इससे खेत बिन शत्रुता के फल फूल कर खूब धान देता है।
पवर्गा प्रथमो रांत स्वरः पष्टः सविंदुकः अथबहस्पतै लक्ष जपान्मंत्रः प्रसिद्धयति
॥५१॥ पवर्ग का प्रथम अक्षर प और रांत (ल) उसमें छठा स्वर (ऊ) बिन्दु (अनुस्वार) सहित मंत्र प्लूं (प्लू) का वृहस्पति मंत्र का एक लाख जप से सिद्ध होता है।
बीजन्धितेन जपानि जपेन्मत्रम् मुजंपन, अचिरादेव शस्यानां संपत्तिः स्यादनी द्दशी
॥५२॥ इन बीजों को जपने से शीघ्र ही धान्य बहुत अधिक इसप्रकार बढ़ते हैं कि जैसे नदी बढ़ती है।
ॐ नमो भगवति रक्त चामुंडै, अपिच अपिच सुपिच सुपिच भिंद भिंद हंस हंस काली काली उच्चाटय उच्चाटय हुं फट् ।
अमुना द्विसहस्त्र जप्ताजप्तं सिद्धेन भस्म ,
प्रस्यांते प्रदक्षिण्टोन विनिक्षिप्तं त्राटोत् मूषिकादेः क्षेत्रं ॥५३।। इस मंत्र को दो हजार जप से सिद्ध करके इससे भस्म को अभिमंत्रित करके यदि दाहिनी तरफ से खेत में डाले तो चूहों आदि के भय से खेत की रक्षा होती होती है।
योगे सितवार मधा प्रथमानां सर्वधान्य संग्रहणं, कुर्यात् मंत्रीन भवेत् धान्यानाम् संक्षय स्तेषां
॥५४॥
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