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________________ 5015015RISTRISIO50 विद्यानुशासन P5055051255015RIES ॐ नमो यक्ष सेनाधि पतटो माणिभद्र किन्नर एहि एहि ठठः॥ यक्षस्य पंच विंशति सहश्र रूप प्रजाप्यतः, सिद्धेतत् सर्वै स्तुतो नरे ट्रैमंत्रोय माणि भद्रस्य ॥४२॥ यह उत्तम मनुष्यों से वंदनीय मणि भद्रयक्ष का मंत्र पचीस हजार जप से सिद्ध होता है। संजप्तमे क विशंति वारान् यद्दतं धवन मेतेन, तेन च दंता धौता स्यात संसिद्धिः कामितान्तस्टा ॥४३॥ इस मंत्र से इक्कीस बार मंत्रित दत्तोन के द्वारा दांत धोने से इच्छित व्यक्ति की प्राप्ति होती है। ॐ नमो भगवत्टी धरण्यै धरणी धरे ठाठः॥ सिद्धि भूभद यारण्यो लक्षत्रयरूप प्रजापतो मंत्रः यांत्ययंमनेन यत चरु होमाद्भूमि समाप्नोति ॥४४॥ इस पृथ्वी मंत्र का तीन लाख जप करके घृत और नैवेद्य से हवन करने से पृथ्वी की प्राप्ति होती होमादेतेन भवते महती लक्ष्मीः शुभैः कुसुमैः, मधुरत्रयेन होमात् स्यात् पुष्टी: सर्पिवोदनं सिदेत् ॥४५॥ उत्तम फूलों के हवन से बड़ी भारी लक्ष्मी की प्राप्ति होती है। त्रिमधुर के होम से पुष्टि होती है, और धृत तथा भात के होम से सिद्धि होती है। सितवारे होमाद्धि प्रतिपन्नक्षत्र मधुषितेन, सहस्त्रं क्षरेणवाय चरूणातत्स्वीयं स्यादली प्रदानात् क्षेत्रं ॥ ४६॥ सितवार (शुक्रवार) को झगड़ेवाले खेत में दूध या नैवेद्य से एक हजार बार हवन करके बलि देने वह से खेत अपना हो जाता है। एकां शकं सं स्थितो बुंध चंद्रमसौः कृतश्चनक्षत्रं, लब्य स्वागवत्यां युगमरिवलैर हितं दोषैः ।। ॥४७॥ चन्द्रमा और बुध के एक अंश पर आने से कोई सा नक्षत्र पाकर यह कार्य करने से बिना विघ्न के पूर्ण होता है। उच्चस्थे सति सूर्ये तदभिमुस्योद्रों दोचि तरूकीलं, मध्ये क्षेत्रं निरिवनेत तदपद्रोहं भवेत्श्वत्: ॥४८॥ CASDDRISTICISIOSSISTR७५ PISTRICISTRISTOTTERSCITY
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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