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________________ 252525252505_fangenena PSPSESESEKES पृष्टि कर्म में लक्ष्मी धन का स्थान भोजन पृथ्वी और कन्या आदि के लाभ तथा अवयव संस्कार रसायण वस्त्र और पुष्टि का उद्देश्य रखना चाहिए। लक्ष्मी प्राप्ति मंत्र उष्मणां प्रथमः पूर्वं पुराणं ज्योति रप्य नुक्रमादि बिंदु मंत्रो सांगो लक्ष्म्यै प्रकीर्तितः 113 11 पहले उष्मी के प्रथम (श) पुराण (फ) ज्योति (ई) यह लक्ष्मी के वास्ते अंग सहित विन्दु मान्न कहा गया है। ॐ श्रिये ठः ठः श्रिये फट· श्रीं नमः श्रियः प्रसाद नमः ठः ठः श्री फट अंगणि पद्माक्षमालयो दन्मुख स्त्रि लक्षं जपेञ्जलस्थोमुं. अमुना बिल्व स्यतले विष्णु गृहेवार्च्चये लक्ष्मीं इस मंत्र को ऊपर की तरफ मुँह करकेकमल गट्टे की माला से तीन लाख जाप करे तथा इसी मंत्र से बिल्व (बेल) के पेड़ के नीचे या विष्णु के मंदिर में लक्ष्मी का पूजन करे। ॥ ४ ॥ नंद्यावर्तलतांत लक्ष्मी धन धान्य कृद्भवेत होमात् नियुतं सदकै हौमा दक्कायैः पट्टवंद्यः स्यात् • ॥५॥ फिर नंधावर्त (नगर) की लता सदके और आक की टहनियों से दस हजार होम करने से लक्ष्मी धनधान्य को देती है। मधुर त्रितयाम्यलैः पिंड़ यात्री तंदुलैत्, भवेत् होमात् लक्षं नृपाधि पत्यं खदिरा ग्नौ वाज्य संयुक्तैः ॥ ६॥ त्रिमधुर (घृत बूरा शहद) पिंड़ी चावल सहित खदिर (खेर) की अग्रि में एक लाख होम करने से नृपाधि पति होता है। उत्तिष श्रीकर ठ ठ सांगं मंत्र ममुं जपेन्शयां, नाभि द्वासे पटासि स्थित्वोर्द्ध करो रविं पश्यन ॥७॥ उतिष्ट श्री कर ठः ठः इस मंत्र का अंग सहित नदी के नाभि तक के जल में ऊपर की तरफ हाथ किए हुए खड़ा होकर सूर्य की तरफ देखता हुआ जाप करे। 252525 १९६८ PP/59595959595
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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