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________________ 25T03525T05RISTS विधानुशासन HASIRSISTERDISTRI51015 भिषय भिषय हुं त्रासय प्रासय हुं प्रमईद्य प्रमईया हुं रक्ष रक्ष हुं प्रध्वंसय प्रध्वंसटा हुं फट अस्त्राय नम अंगानि इति साधित मतुना यः साज्यै र बजै स्त्रि लक्षम थजुह्यात् तद्रोहं च तदन्वय जातांश्व मजेत सदैव श्री: ॥८॥ इस को इस प्रकार सिद्ध करके जो घृत सहित कमल के फूलों से एक लाख हवन करता है उसके घर और बंश में सदा ही लक्ष्मी रहती है। बिल्वस्य दलैरमुना होमात संपद्यते पृथु संपत्, लक्ष त्रितयं त्रिमधुर शिलै वा पुष्पपुग फल सदकैः ॥९॥ इसी मंत्र से बेल के पत्तों त्रिमधुर पुष्प और सुपारी और शदक से तीन लाख हवन करने से बड़ी भारी संपत्ति की प्राप्ति होती है। अपमृत्यु विनाशः स्यात होमात् दुर्वा म राज्य शिक्ताभिः, लक्षं पतेन होमायुाोविजश्च शांतिश्च: ॥१०॥ दूब के बोझ (बंडल) को घृत में भिगोकर एक लाख हवन करने से अपमृत्यु का विनाश होता है तथा घृत से एक लाख जप करके होम करने से युद्ध में विजय और शांति मिलती है। जप्ते सरसिज सूत्रं भुज घत मतेन सर्वरक्षा कत, पुष्पंती प्सित मुना जप्त पूजा स्नान कम्माणि ॥११॥ इस मंत्र से कमल के धागे को अभिभांत्रित करके हाथ में बांधने से सब प्रकार की रक्षा होती है। इस से जप करने से पूजन करने से और खान के कार्य से इच्छित कार्य सफल होते है। पद्मोद्भव श्रिो नमः इति मंत्रे नित्य जाप्प योगेन रेखा नामायं सपदमभिपटोत्सांगं ॥१२॥ पद्मोद्भव श्रिये नमः इस मंत्र का अंग सहित नित्य जाप करने से यह संपत्ति को बढ़ाता है। अंग :- पद्मोद्भवे नमः ॐ पद्मोद्भवे स्वाहा पद्मोदवे नमः पद्मोद्भव ठः ठः श्री नमः SADOISSETISTSISEDICI5[९६९ PASTOTSTOTSEASOIDIOSITION
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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