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________________ CASTRISTRIODICISTD35 विधानुशासन P5215255015015TOS भूसल के ऊपर दीपक और कलश के नीचे कांसी के पात्र को रखकर उसकी चंदन अक्षत पुष्प और नैवेद्य आदि से पूजन करे। कूरारिमारि शाकिन्युरेग नवग्रह पिशाच भूत भटान्, अपहरति कृतस्तेकस्ता थबुधस्तुतैः सलिलैः ॥ ३०८ ॥ इस घड़े के जल को छिड़कने से क्रूर शत्रु मारि शाकिनी सर्प नवग्रह पिशाच और भूतों का भय उसी दाण दूर हो जाता है। फलके वा चर्मणी वा विनस्यतं भाषस्य वद्वारिव्या, तन्मोक्षरोत बहादततिचिरे एत कालेन ॥३०९॥ तख्ती पर या चमड़े पर रखे हुए उड़द को बांधने वाले पुरुष का बंधन से शीघ्र ही छुटकारा मिल जाता है। करण कलितं मूलं निर्गुन्डया स्सोम दिग्गतां, बद्धस्स कुरुते पुंसः क्षणेनैव विमोक्षणं ॥३१०॥ सोम (उत्तर) की दिशा में की निगुंड़ी को हाथ से लेकर बांधने वाले पुरुष को बंधन से शीघ्र ही छुटकारा मिल जाता है। शिरिव कव वा पदाम्यां कृतलेपं नंद्यांते स्वयं निगलं, पित् वन भूमे रंत रिवन्य सप्ताहमताभ्यां ॥३११॥ मोर के गले और पैरों को श्मसान में सातदिन तक गाड़कर उसका लेप करने से स्वयं ही बंधन खुल जाते हैं। प्रोक्तंऽत्र चैक विधि शांति विद्या वधीति, श्री शांति नाय. चरणा बुज युग्म भक्त: इत्यायु पल्लव विकल्प परं पराणां शांति प्रशांत हदयो विदधीत मंत्री ||३१२॥ इस प्रकार यहाँ पर शांति के विधान का वर्णन किया गया श्री शांतिनाथ भगवान के चरण कमलों का भक्त मंत्री शांतचित होकर इन उपद्रव के भेदों में पड़े हाए पुरुषों की शांति करे। इति शांति विधानं नाम विशंति समुद्देशः CISIOT5105PISTD358151055९६६ P15105DISIODIOTSIDEOS
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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