SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 971
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ CASEASISASIDASICISIT विद्यानुशासन 95015TSAPTOICICISION वहिरमतमंत्रं वलयं दद्यात्स्वर युक्त षोड़श दलाब्जं, यंत्रमिदं घटनु बुडो खटिका हिम मलयजै विलिरियेत ॥ ३०२॥ उसके बाहर अमृत मंत्र का वलय देकर सोलह दल के कमल में स्वरों को लिखे इस यंत्र को घड़े के अन्दर खड़िया कपूर और चंदन से लिखे । ॐअमृते अमृतोजो अमत ती अमृतावस शायराम लीं क्लीं ब्लू ब्लूंद्रां द्रां द्रीं द्रीं द्रावय द्रावय स्वाहा || अमृत मंत्र सन्मार्जित भूमितले कृत्वोपरि पुष्प मंडल तस्य मध्ये विकीर्य शालि स्तेषु निदध्या ज्जूतन वस्त्रं ॥३०३ ।। एक साफ की हुई (अपतित गोमय विलिप्र भूमौ = जमीन पर नहीं गिरे हुए गोबर से लिपी हुई जमीन पर) एक फूलों का मंडल बनाकर उसमें धान (शवल) बिखेर कर उस पर एक नया कपड़ा रख दे। प्रतसित वस्त्रे येष्टित मंणः पूर्ण सुवर्ण वृत कंठं, संस्थाप्येद् घटं तं लोह मयत्ति पदिका निहितं ||३०४॥ उस पर नए सफेद वस्त्र में लपेटे हुए अर्ण (जल) से भरे हुए कंठ (गले) पर सुवर्ण (सोने ) से घिरे हुए घट को स्थापित करे उसको लोहे की बनी हुई तीन पाये याली तिपाई पर रखे। घट यंत्रं नव रन त्रिलोह पुष्पैः सह क्षिपेत्कुंभे, तन्मंत्री कुंभ मुखं कास वृतेन चापिधेयं ॥३०५।। फिर उस यंत्र को नवरत्न त्रिलोह (ताम्र-१२ चांदी १६ सुवर्ण =३ भाग) और पुष्पों के साथ घड़े में रख दे तथा उस घड़े का मुख.कांसी के ढकने से ढक दे। (कांस - इाभ से ढक दे) क्षीर गुम मुख कां ची द्वय युतं वुध्यत हिम लिप्तं, सुरभितकुसुम वेष्टयं तद तकं मस्तके स्थाप्यं ॥३०६ ॥ उस घट के मस्तक पर एक दो मेखलाओं से युक्त चंदन कपूर से पुते हुए सुगंधित पुष्पों से घिरे हुए गोल क्षीर वृक्ष (पीपल) के भूसल की स्थापना करे। मूसलस्योपरि दीपं निधाय कांस्यमय भाजनं, कलश तलेवहिरचोत्समंतात् गंधाक्षत कुसुम चरुकायै ॥ ३०७॥ 05015015121535255005९६५ PISODOSDISTRI5015015
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy