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________________ 95959519519115 विधानुशासन 9696959595 नाम सकारांतर्गत मंबुधिटांता वृतं वहिश्च कला:, वलयितमनिलाद्यष्टमा वेष्ट्रय कों प्रों त्रों वसु बीज वलयं च मंतिन तु संपुटितं तद्वलयितम मृत मंत्रेण ॥ नाम को स के बीच में लिखकर उसके चारो तरफ अंबुधि (आय) और टांत (ठ) से वेष्टित करके उसके बाहर कला (सोलह स्वर) लिखकर उसको आठ दिशाओं में वायुमंडल में य अनिल (हंस) सेवेष्टित करके क्रों प्रों त्रों और यसु बीज (ठ) के वलय से घेरे फिर भांत (म) का संपुट बनाकर अमृत मंत्र से वेष्टित करे। ॐ पक्षि स्वः पक्षि स्वः वीं श्वः व्हः वं क्षः हर हंसः ज जलं पक्षि स्वाहा सर सुंस हर हु हः । अमृत मंत्र वहिरष्ट दलांबुज युत मुख वनामृत घंट विलिखेत् तस्य वंकारं मुखे पत्रेषु थवप्नु दलेषु लकारं कूटस्थ नाल मूलं यट यंत्र मिदं विलिख्या भूर्ज दले काश्मीर रोचनां गुरु हिमया व कमलराज नीरैः सुत्रेण वहि वैष्टयं सिक्थक परिवेष्टितं वहि कृत्वा गंधाक्षत कुसुमाद्यै स्तयंयंत्र प्रार्च्य विन्यसेत् ॥ उसके बाहर आठ दल वाले कमल सहित मुखवाले अमृत घट को बनाए उसके मुख में वकार और पत्तो में लकार को लिखे। उस कमल की नाल की मूल में कूटाक्षर (क्ष) लिखे इस घट यंत्र को भोजपत्र पर केशर गोरोचन अगर कपूर वक (गूमा औषधि) और मलयज (चंदन) के जल से लिखकर PSPSP5959SP/SPS/९६३ PSP595959555
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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